बेसिक शिक्षक खुद ही फंस गये अपने ही जाल में...
बेसिक शिक्षक खुद ही फंस गये अपने ही जाल में...
कानपुर देहात। जब सरकार ने सेल्फी के माध्यम से शिक्षकों की उपस्थिति लेने का आदेश किया था तब हमने भरपूर विरोध किया था। सरकार ने जब कड़ा रवैया अपनाया तो हमने साफ बता दिया कि हम अपने मोबाइल का इस्तेमाल विभागीय कार्य करने के लिए बाध्य नहीं है। सरकार ने कदम पीछे लिया और टेबलेट देने की योजना पर कार्य करने लगी। इसी बीच आ गया निष्ठा प्रशिक्षण। हमने प्रशिक्षण प्राप्त किया और संगठन के छिटपुट विरोध के बावजूद पूरी निष्ठा से हमने अपने मोबाइल से सारा फीडबैक भेजा।
फिर आ गया ऑनलाइन शिक्षण। हमने आपदा काल समझकर कोई सवाल नहीं किया। व्हाट्सएप ग्रुप बनाया और लग गये ऑनलाइन शिक्षण कार्य में। असली समस्या अब शुरू हुई। अपने मोबाइल का इस्तेमाल करने न करने का सवाल बहुत पीछे छूट गया। अब जब गाँव में प्रवासियों की भीड़ बढ़ी तो हमें गांव-गांव जाकर अभिभावकों की मोबाइल में दीक्षा एप, आरोग्य सेतु एप डाऊनलोड करना है। पहले ऑनलाइन शिक्षण के लिए विभाग ने हमसे सहयोग की अपेक्षा की। हमने सहयोग करना शुरू किया तो अब आदेश आने लगा। आज एक नया आदेश आया कि ऑनलाइन शिक्षण में प्रत्यय ब्लॉक के दो सबसे अधिक और दो सबसे कम छात्रों के प्रति वाले स्कूलों की सूची भेजिए। मंशा क्या है अभी नहीं मालूम किन्तु मुझे लग रहा नोटिस वगैरह बन सकती है। अब अगला आदेश ये हो सकता कि जिन अभिभावकों के पास मोबाइल और नेट नहीं है शिक्षक उनके घर जाकर अपने मोबाइल से शिक्षण कार्य करें। इसी बीच सेवा संघों के अधिकार 6 माह के लिए स्थगित कर दिये गये। मतलब अब हम धरना प्रदर्शन, हड़ताल नहीं कर सकते। वैसे भी अब हम संगठन से ज्यादा विभाग की सुनते हैं। संघ और शिक्षकों के बीच विश्वसनीयता का संकट है। हमारा भविष्य कैसा होगा हम नहीं जानते। कोरोना के बहाने हमें कदम दर कदम लपेटे में लिया जा रहा है। हालात ऐसे हैं कि हम उपफ भी नहीं कर सकते। कोरोना आया है तो जायेगा किन्तु हम कहाँ तक जायेंगे ये समय के गर्भ में है। आज मुझे देश के मुखिया द्वारा कही बात समझ में आ गई। उन्होंने कहा था कि हमें कोरोना महामारी के रुप में नहीं अवसर के रूप में देखना चाहिए। शायद वह शुभ अवसर यही है। कुल मिलाकर शिक्षक जिस मोबाइल से दूर भाग रहा था आज अपनी वाहवाही के चक्कर में उसके
फिर आ गया ऑनलाइन शिक्षण। हमने आपदा काल समझकर कोई सवाल नहीं किया। व्हाट्सएप ग्रुप बनाया और लग गये ऑनलाइन शिक्षण कार्य में। असली समस्या अब शुरू हुई। अपने मोबाइल का इस्तेमाल करने न करने का सवाल बहुत पीछे छूट गया। अब जब गाँव में प्रवासियों की भीड़ बढ़ी तो हमें गांव-गांव जाकर अभिभावकों की मोबाइल में दीक्षा एप, आरोग्य सेतु एप डाऊनलोड करना है। पहले ऑनलाइन शिक्षण के लिए विभाग ने हमसे सहयोग की अपेक्षा की। हमने सहयोग करना शुरू किया तो अब आदेश आने लगा। आज एक नया आदेश आया कि ऑनलाइन शिक्षण में प्रत्यय ब्लॉक के दो सबसे अधिक और दो सबसे कम छात्रों के प्रति वाले स्कूलों की सूची भेजिए। मंशा क्या है अभी नहीं मालूम किन्तु मुझे लग रहा नोटिस वगैरह बन सकती है। अब अगला आदेश ये हो सकता कि जिन अभिभावकों के पास मोबाइल और नेट नहीं है शिक्षक उनके घर जाकर अपने मोबाइल से शिक्षण कार्य करें। इसी बीच सेवा संघों के अधिकार 6 माह के लिए स्थगित कर दिये गये। मतलब अब हम धरना प्रदर्शन, हड़ताल नहीं कर सकते। वैसे भी अब हम संगठन से ज्यादा विभाग की सुनते हैं। संघ और शिक्षकों के बीच विश्वसनीयता का संकट है। हमारा भविष्य कैसा होगा हम नहीं जानते। कोरोना के बहाने हमें कदम दर कदम लपेटे में लिया जा रहा है। हालात ऐसे हैं कि हम उपफ भी नहीं कर सकते। कोरोना आया है तो जायेगा किन्तु हम कहाँ तक जायेंगे ये समय के गर्भ में है। आज मुझे देश के मुखिया द्वारा कही बात समझ में आ गई। उन्होंने कहा था कि हमें कोरोना महामारी के रुप में नहीं अवसर के रूप में देखना चाहिए। शायद वह शुभ अवसर यही है। कुल मिलाकर शिक्षक जिस मोबाइल से दूर भाग रहा था आज अपनी वाहवाही के चक्कर में उसके
चक्रव्यूह में फस गया है। अब कोई भी शिक्षक यह नहीं कह सकेगा कि हमारे पास एंड्रॉयड मोबाइल नहीं है विभाग द्वारा माँगी गई सूचनाओं व आदेशों का क्रियान्वयन अब उसे अपने मोबाइल से करना ही होगा।
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