बेरोजगार युवाओं के लिए नासूर बन गए परीक्षाओं के गलत प्रश्न, जानिए अबतक कहाँ-कहाँ रहे विवाद
बेरोजगार युवाओं के लिए नासूर बन गए परीक्षाओं के गलत प्रश्न, जानिए अबतक कहाँ-कहाँ रहे विवाद
भर्ती परीक्षाओं में पूछे जाने वाले गलत प्रश्न बेरोजगारों के लिए नासूर बन गए हैं। पहले तो कोई भर्ती जल्दी शुरू नहीं होती और किसी तरह शुरू हो भी जाए तो उनमें पूछे जाने वाले गलत प्रश्न उसे जल्दी पूरा नहीं होने देते। बात चाहें प्राइमरी स्कूल में शिक्षक भर्ती की हो या फिर प्रदेश की सबसे बड़ी परीक्षा उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की पीसीएस, हर भर्ती में प्रश्नों का विवाद बना रहता है। सवाल है कि ये संस्थान विशेषज्ञ कहां से लाती है जो उस परीक्षा में पूछे जाने वाले 100-150 सवाल सही नहीं पूछ पाते। इन विवादों का सबसे अधिक नुकसान प्रतियोगी छात्रों को उठाना पड़ता है।
शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) 2017 और 2018 में विवादित प्रश्नों को लेकर अभ्यर्थियों ने हाईकोर्ट में याचिकाएं की थी। सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में प्रवक्ता और सहायक अध्यापक पद पर भर्ती करने वाले उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन आयोग की शायद ही कोई ऐसी भर्ती हो जिसमें प्रश्नों का विवाद न हुआ हो और बाद में परिणाम संशोधित न करना पड़ा हो। उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की पीसीएस प्री 2017 और पीसीएस प्री 2016 समेत सात भर्ती परीक्षाओं में इस प्रकार का विवाद सामने आ चुका है। पीसीएस जे प्री 2013 परीक्षा में 15 प्रश्नों को लेकर विवाद हुआ था। परीक्षार्थियों की अपील पर आयोग ने विशेषज्ञ समिति गठित कर परीक्षण करवाया था और परीक्षार्थियों की आपत्ति सही पाए जाने पर हाईकोर्टने परिणाम बदले जाने के आदेश दिए थे। आयोग ने 19 दिसंबर 2013 को संशोधित परिणाम जारी किया था। समीक्षा अधिकारी/सहायक समीक्षा अधिकारी भर्ती 2013 में गलत प्रश्नों को लेकर दाखिल याचिका पर हाईकोर्ट ने सितंबर 2014 में आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अनिल यादव को कोर्ट में तलब किया था।
हमारा सरकार से अनुरोध है कि ऐसी परीक्षा संस्था और विषय विशेषज्ञों के पैनल का चयन होना चाहिए जो प्रश्नों के चयन के समय से यह सुनिश्चित कर ले कि संबंधित प्रश्न का एक ही विकल्प होगा। ताकि भर्ती फंसने और विवाद की स्थिति ही पैदा न हो। इससे भर्ती एक निश्चित समय में जल्द पूर्ण होगी और बेरोज़गारी दर कम होगी। -पीयूष शुक्ला, 68500 में चयनित शिक्षक
69000 भर्ती प्रक्रिया पर रोक बेरोजगारों के साथ मजाक है। हाईकोर्ट का आदेश आने तक काउंसिलिंग नहीं होनी चाहिए थी। बेरोजगारी अभिशाप है। सरकारों को इन मुद्दों पर सोचना चाहिए। न जाने कितने अभ्यर्थी 2000-3000 उधार लेकर काउंसिलिंग में शामिल होने गए होंगे। काउंसिलिंग दो दिन बाद ही हो जाती, तो क्या बुरा था। -अनुराग सिंह, 72825 भर्ती में चयनित शिक्षक
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