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बेरोजगारी की अपनी - अपनी परिभाषा है। आज बात 69000 शिक्षक भर्ती की करूंगा।

बेरोजगारी की अपनी - अपनी परिभाषा है। आज बात 69000 शिक्षक भर्ती की करूंगा।

बेरोजगारी की अपनी - अपनी परिभाषा है। आज बात 69000 #शिक्षक_भर्ती की करूंगा।

पिछले 19 महीने से भर्ती भारत के न्यायालयों के चक्कर काट रही है। चयनित अभ्यर्थियों की सूची भी जारी हो गई। 67867 लोग अपना नाम भी देख चुके। 50% से अधिक काउंसलिंग भी करवा चुके। लेकिन "ढाक के तीन पात" ही रहते हैं।

मैं इस पूरे 19 माह की पीड़ा तो नहीं लिखना चाहता क्योंकि उस पर इतना लिखा जा चुका है कि शायद ही कोई अभागा पूरी बातों से अनजान होगा। आज बात केवल #सरकार, #न्यायालय और #अभ्यर्थी की होगी। जिम्मेदारी कौन है? इसकी तलाश कर लीजिएगा।

📌सरकार

भर्ती परीक्षा करवाई। सरकार की मशीनरी ने परीक्षा में पास कितने नंबर पर होना है यह नहीं बताया। तब कई लोग #धरना भी दिए। लेकिन क्या मजाल जो सरकार और उसके नुमाइंदों के कान पर जूं भी रेंग जाता। अधिकारियों से बात भी की तो उन्होंने बताया अभ्यर्थियों का काम पढ़ना है। जाओ, पढ़ो। हम अपना काम सही से कर लेंगे।

 जीपीओ, लखनऊ पर कुछ लोग आवाज उठाने पहुंचे भी तो उन्हें सीओ स्तर के अधिकारी ने डंडा फटकार के भगा दिया। 

6 जनवरी 2019 को परीक्षा हुई। 7 जनवरी 2019 को पासिंग मार्क्स लगाया गया। और उस दिन का पैदा विवाद आज 19 महीने से कोर्ट के चक्कर काट रहा है। पहले लखनऊ और इलाहाबाद में फैसला आया और फिर उसके बाद आज #सर्वोच्च_न्यायालय में तारीखों का खेल जारी है।

सरकार ने अपना पासिंग मार्क्स लगाया तो बचाना भी था। तो साहब डबल बेंच, उच्च न्यायालय में उत्तर प्रदेश के #महाधिवक्ता को आबद्ध किया गया था। जब - जब तारीख होती तब - तब महाधिवक्ता को कोई और काम आ जाता। सरकार के अधिकारियों का फोन महाधिवक्ता नहीं उठाते।

अभ्यर्थियों ने धरना दिया। दो बार धरना दिया। एक रात पूरी #निदेशालय के बाहर मलेरिया के मच्छर से लड़कर काट दी। तब सरकार के महाधिवक्ता जागे। तब कोर्ट गए। पर न्यायालय में तारीख ही लेकर भागे। सुनवाई अंतिम दौर में थी। तब #पोस्टर और #ट्विटर से अभ्यर्थियों ने याचना की। मालिक, आपकी ही भर्ती है। बचा लो इसे। तब जा कर कहीं सरकार अपना पक्ष रखवा सकी।

 अभ्यर्थी सक्रिय नहीं होते तो #सिंगल बेंच जैसा हाल भी हो सकता था। जहां सरकार औंधे मुंह गिरी थी। 

सरकार के मुखिया मुख्यमंत्री #योगी_आदित्यनाथ आये दिन बयानबाजी करके निकल जाते हैं।

पहले वादा किया 15 फरवरी 2019 को नियुक्ति मिलेगी। अभ्यर्थियों में उम्मीद जगी पर सब खेल का हिस्सा निकला। 

2019 चुनाव की रैली में अभ्यर्थियों ने पोस्टर दिखा के याद भी दिलाया कि महाराज कुछ वादा था। तो मुख्यमंत्री जी ने खुले मंच से कहा था -  #_बैनर_नीचे_कर_लो_नहीं_तो_जिंदगी_भर_बेरोजगार_रह_जाओगे
ताली बजाने वाले इस पर भी अभ्यर्थियों को दोषी ठहरा दिए कि मुख्यमंत्री जी को नाराज मत करो।

डबल बेंच का फैसला आया। सरकार जीती तब मुख्यमंत्री जी बोले 7 दिन में नियुक्ति देंगे। बिना सोचे बिना समझे कि अभी इतनी प्रक्रिया शेष है कितना भी जल्दी हो पर 1 महीना लग जायेगा। 

सरकारी पैनलिस्ट पेपर नहीं सही बना पाते। बेरोजगार दिन रात पढ़ता है। पेपर में बैठता है। और वो पर्चा भी सवालों के घेरों में खड़ा हो जाता है। काउंसलिंग करा रहे अभ्यर्थी उसी गलत पर्चे के कारण बाहर खड़े नजर आते हैं। 

पर्चा लीक की भी सूचनाएं हैं। एक ही परिवार से 4 लोग के एक जैसे नंबर। एक ही सेंटर से 125+ नंबर एक तरफ से। सरकार अपना तंत्र सुशासन के नाम से चलाती है। लेकिन कैसा सुशासन जहां पेपर से पहले पेपर पहुंच जाए? जहां बोल के सवाल के उत्तर बता दिए जाएं?
कैसी ज़ीरो टॉलरेंस?
 जब भ्रष्टाचार अपना नंगा नाच नाच रहा हो।

अब मामला सर्वोच्च न्यायालय में है। पहले उच्च में था। तब उच्च न्यायालय कह कर जिम्मेदारी से भाग जाते थे। अब सर्वोच्च न्यायालय कह कर भाग जाते हैं।
वहां सर्वोच्च न्यायालय में कोई बहुत प्रभावी भूमिका में नहीं है सरकार। काम कर रही है लेकिन सरकार का विपक्षी सरकार से दो कदम आगे ही रहता है। सरकार तारीख नहीं ले पाती। विपक्ष तारीख पर तारीख ले लेता है और ये बस ऑनलाइन जुड़ जाते हैं। और समर्थक अभ्यर्थी ताली पीट देते हैं।

📌 न्यायालय

हालांकि न्यायालय पर टिप्पणी करने से बचने को कहा जाता है। लेकिन न्याय तंत्र से तो सवाल कर सकते हैं ना?
 कोर्ट इस संविधान में कहां खड़ी नजर आती है?
न्याय देने के तंत्र में ना?
फिर मूल अधिकार समानता देते हैं। है ना?
सर्वोच्च न्यायालय को ही संविधान का अभिभावक बनाया गया है ना?
समानता लेकिन है क्या?
और किधर?
4-5 लाख एक दिन आने की वकीलों की फीस है साहब। गरीब लाचार तो न्याय मांगने की सोचे भी नहीं। #पूंजीपति तो पैसा फेक कर न्याय ले लेगा। गरीब 100 - 500 रुपया जुटा कर न्याय मांगता है। उसमें भी वो सीधा नहीं जुड़ा है। बड़े भैया, छोटे भैया, फला टीम और जाने कौन - कौन ...।
सबका दावा है कि वो न्याय दिलवा देंगे। लेकिन बात यहां पर आती है कि 1 करोड़ का खर्चा जब एक सुनवाई का हो तो कौन से "न्याय की गुहार" लेकर किस उम्मीद में जी रहे हो?

न्याय तंत्र में भी सारा खेल प्राथमिकता का है। कुछ केस बहुत जरूरी हैं। और कुछ ... क्या लिखूं...!
खैर, जाने दीजिए। इसको यहीं छोड़ देते हैं।

📌 अभ्यर्थी

सबसे मासूम आदमी। इस पूरे खेल में सबसे आखिरी। और वो भी अलग अलग धड़ों में टूटा हुआ। वो बेचारा है। वो न्याय मांगता है जब सरकार से तो सरकार उसे जिंदगी भर बेरोजगार रहने को धमाका देती है पर साहब वो ताली बजाना नहीं बंद करता। सरकार वकील नहीं भेजती। पर ताली बजाना नहीं बंद करता।

धरना देता है तो ऑफिस के जैसा। 10-4 बजे तक। 4 बजे उसकी अर्जेंट ट्रेन होती है। जिससे उसे भागना होता है।

सरकार जरा सा कुछ कर दे तो जय जयकार करता है।
कुछ अभ्यर्थी कहते हैं अब भाजपा का झंडा घर पर लगा लें सब।नौकरी मिलने वाली है। कुछ कहते हैं कि अब दो ही रक्षक हैं एक #महाकाल और एक #योगी जी। वाह भाई वाह। भगवान को तो छोड़ सकते थे। और इससे भी आगे ट्विटर पर थैंक्यू का कैंपेन। मतलब संघर्ष जो किया वो सब पागलपन था क्या?

जरा से उम्मीद कोई झूठी भी दे देता है तो अधीर होकर माला जपना शुरू हो जाता है। 

विपक्ष आवाज उठाता है। तो उसे मिलकर गरियाना शुरुकर देते हैं। मेरे भाई! कितने मासूम हैं हम सब। लोकतंत्र में सरकारें काम नहीं करतीं।विपक्ष काम करवाता है। इतना सरल सा फॉर्मूला नहीं जानते हम। 

भेंट भी होती है। सरकार के मुखिया या उनके नुमाइंदों से तो कोई आवभगत नहीं होती। बैठा कर  मालपुआ नहीं बनवाए जाते। वहां भी दुत्कारा ही जाता है। मुख्यमंत्री आवास से भगाया जाता है। भाजपा कार्यालय से पुलिस से उठवा दिया जाता है। पर नहीं। ताली कम नहीं होनी चाहिए। 

आज की तारीख में 2 करोड़ से ऊपर का पैसा न्याय मांगते हुए फूंक दिया। लेकिन एक बार भी सरकार की आंख में आंख डाल कर नहीं पूछा कि जो जिम्मेदारी तुम्हारी थी वो आखिर हमें क्यों निभानी पड़ रही है? 

कुछ लोग कहते हैं कि 69000 पर बोलो। लो बोल दिया। और सच बोल दिया। सुन लो यही सच्चाई है। सरकार से नौकरी पाने की हिम्मत नहीं है हम सबकी। जिंदा लाशें हैं हम। ताली पीटने वाले गुलाम। घर बैठ के 19 महीने से तमाशा देखने वाली भीड़।

कुछ मुझे टारगेट करेंगे। तो कर लेना मेरे भाई। पर याद रखना तुम मुझसे भी लाचार हो। कम से कम लिख तो रहा हूं। तुम मौन हो। अपने अधिकार के लिए भी और अपने परिवार के लिए भी।

#एक_आदमी_को_भगवान_बनाने_के_लिए_तुमने

 #आत्मसम्मान
#आर्थिक_स्थिति
 #अधिकार 
#बेरोजगारी
#अपने_सपने

और न जाने किस किस चीज से समझौता कर लिया है।

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