पढ़ाई छोड़ने पर भी नहीं रहेंगे खाली हाथ,राहत की बात: नौकरी पाने के लिए करने होंगे तीन साल के डिग्री कोर्स
पढ़ाई छोड़ने पर भी नहीं रहेंगे खाली हाथ,राहत की बात: नौकरी पाने के लिए करने होंगे तीन साल के डिग्री कोर्स
नई शिक्षा नीति में शिक्षा को मजबूत बनाने के साथ उसे सरल भी किया गया है ताकि हर किसी की पहुंच रहे और किसी स्तर पर यदि कोई पढ़ाई बीच में छोड़े तो खाली हाथ न रहे। नीति में शिक्षा के क्षेत्र में पहली बार मल्टीपल एंट्री और एग्जिट सिस्टम को लागू किया गया है। मल्टीपल एंट्री और एग्जिट सिस्टम शिक्षा के ढांचे में बहुत अहम सुधार माना जा रहा है। इसके साथ ही तीन और चार साल के दो अलग-अलग तरह के डिग्री कोर्स भी शुरू किए जाएंगे। इनमें नौकरी करने वालों के लिए तीन साल का कोर्स होगा, जबकि शोध के क्षेत्र में रुचि रखने वालों को चार साल का डिग्री कोर्स करना होगा।
शिक्षा मंत्रलय के उच्च शिक्षा सचिव अमित खरे ने नीति के प्रमुख बिंदुओं की जानकारी देते हुए मल्टीपल एंट्री और एग्जिट सिस्टम की खासियत गिनाईं। उनका कहना था कि मौजूदा व्यवस्था में यदि चार साल के बीटेक या इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाला छात्र किसी कारणवश यदि कोई आगे की पढ़ाई नहीं कर पाता है तो उसके पास कोई उपाय नहीं होता। उसकी पिछली पूरी मेहनत बेकार हो जाती थी। लेकिन नए सिस्टम में एक साल के बाद सर्टििफकेट, दो साल के बाद डिप्लोमा और तीन-चार साल के बाद डिग्री मिल जाएगी। इससे ऐसे छात्रों को बहुत फायदा होगा जिनकी किसी कारणवश पढ़ाई बीच में छूट जाती है।
नीति में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में जो और भी अहम बदलाव किए गए हैं, उनमें तीन और चार साल के डिग्री कोर्स शामिल हैं। इसके तहत जो छात्र शोध के क्षेत्र में काम करना चाहते हैं उनके लिए चार साल का डिग्री प्रोग्राम होगा। जो लोग नौकरी में जाना चाहते हैं उनके लिए तीन साल का ही डिग्री प्रोग्राम होगा। इस दौरान जो रिसर्च में जाना चाहते हैं, वे इसके बाद सिर्फ एक साल का एमए करके चार साल के डिग्री प्रोग्राम के तहत सीधे पीएचडी कर सकते हैं। इसके साथ ही शोध को बढ़ावा देने के लिए एक राष्ट्रीय शोध फाउंडेशन भी गठित किया जाएगा। जिससे जुड़कर सभी उच्च शिक्षण संस्थान शोध के क्षेत्र में बेहतर कर सकेंगे।
नीति पर 2015 से चल रहा काम
नई शिक्षा नीति की जरूरत देश में पिछले करीब एक दशक से महसूस की जा रही थी, लेकिन इस पर काम 2015 में शुरू हो पाया, जब इसे लेकर सरकार ने टीआरएस सुब्रमण्यम की अगुआई में एक कमेटी गठित की। कमेटी ने 2016 में जो रिपोर्ट दी, उसे मंत्रलय ने और व्यापक नजरिये से अध्ययन के लिए 2017 में इसरो के पूर्व प्रमुख डॉ. के. कस्तूरीरंगन की अगुआई में एक और कमेटी गठित की, जिसने 31 मई, 2019 को अपनी रिपोर्ट दी। इससे पहले शिक्षा नीति 1986 में बनाई गई थी। बाद में इसमें 1992 में कुछ बदलाव किए गए थे।
नई नीति के पांच स्तंभ
प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट कर नई शिक्षा के पांच स्तंभों का उल्लेख किया। ये पांच स्तंभ हैं एक्सेस (सब तक पहुंच), इक्विटी (भागीदारी), क्वालिटी (गुणवत्ता), अफोर्डेबिलिटी (किफायत) और अकाउंटेबिलिटी (जवाबदेही)।
बड़ी बात
नीति को अंतिम रूप देने के लिए व्यापक चर्चा की गई। इसमें पंचायत से लेकर सांसदों और आमजन तक की राय ली गई। इसके तहत करीब चार लाख लोगों ने अपने सुझाव दिए थे। इसके साथ सभी राज्यों के साथ भी इसे लेकर चर्चा की गई थी।
फीस की अधिकतम सीमा होगी तय
कौन संस्थान किस कोर्स की कितनी फीस रख सकता है, इसका भी एक मानक तैयार किया जाएगा। साथ ही अधिकतम फीस तय की जाएगी। यह कै¨पग (अधिकतम सीमा) उच्च शिक्षा और स्कूली शिक्षा दोनों के लिए होगी। इसके दायरे में निजी और सरकारी दोनों ही संस्थान आएंगे। फीस का दायरा इस तरह बनाया जाएगा, जिससे हर कोई पढ़ सके।
छात्र कोर्स को बीच में बदल सकेंगे
उच्च शिक्षा में पाठ्यक्रमों को कुछ इस तरह से तैयार किया जाएगा, जिसमें छात्र कोर्स को बीच में भी बदल सकेंगे। यानी छात्रों की अभिरुचि को पंख फैलाने का पूरा दायरा दिया गया है। इसके तहत उच्च शिक्षा के सकल नामांकन दर (जीईआर) को 2035 तक 50 फीसद तक पहुंचाने का लक्ष्य भी रखा गया है। फिलहाल यह अभी 26 फीसद के आसपास है।
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