नई शिक्षा नीति लचीलेपन के साथ गुणवत्ता के मानक पर सख्ती, तीन साल के अनिवार्य बीए के स्थान पर अब छात्रों को हर साल की डिग्री मिलेगी
नई शिक्षा नीति लचीलेपन के साथ गुणवत्ता के मानक पर सख्ती, तीन साल के अनिवार्य बीए के स्थान पर अब छात्रों को हर साल की डिग्री मिलेगी
नई दिल्ली: नई शिक्षा नीति में कायदे-कानूनों में बंधी उच्च शिक्षा की पूरी प्रणाली को लचीला बना दिया गया है, लेकिन इसके साथ ही उच्च शिक्षा में गुणवत्ता के कड़े मानक भी तय किए गए हैं। इससे एक तरफ जहां कॉलेज, विश्वविद्यालय और अन्य शिक्षण संस्थान बंधनों से मुक्त होंगे वहीं छात्रों को जरूरत के मुताबिक शिक्षा हासिल करने का हक मिलेगा। तीन साल के अनिवार्य बीए के स्थान पर छात्रों को हर साल की डिग्री मिलेगी और किसी कारण से बीच में पढ़ाई छोड़ने वाले को अपनी सहूलियत के हिसाब से फिर पढ़ाई शुरू करने की छूट भी मिलेगी। सरकार ने अगले 15 साल में उच्च शिक्षा में एडमिशन लेने वाले छात्रों की संख्या को दोगुना करने का लक्ष्य रखा है।
हर साल की शिक्षा का प्रमाणपत्र
नई शिक्षा नीति के तहत छात्रों को सबसे अधिक सहूलियत पढ़ाई को कभी भी छोड़ने और दोबारा शुरू करने की छूट के रूप में दी गई है। तीन साल के अनिवार्य डिग्री कोर्स के बजाय अब छात्रों को हर साल की पढ़ाई का प्रमाणपत्र दिया जाएगा। एक साल की बीए की पढ़ाई करने वाले को सर्टिफिकेट, दो साल की पढ़ाई के बाद एडवांस डिप्लोमा और तीन साल की पढ़ाई पूरी करने वालों को स्नातक की डिग्री दी जाएगी। वहीं किसी कारण से एक साल या दो साल के बाद पढ़ाई छोड़ने वाले छात्रों को एक अंतराल के बाद फिर आगे की पढ़ाई जारी करने की सुविधा मिलेगी। पहले और दूसरे साल की पढ़ाई में मिले अंक डिजिटल रूप से तैयार ‘एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट’ में जमा होंगे, जो अंतिम डिग्री में बाद में अपने-आप जुड़ जाएंगे।
संबद्धता की नई व्यवस्था
नई नीति में उच्च शिक्षा की मौजूदा प्रणाली में भी आमूल-चूल सुधार किया गया है। इसके तहत धीरे-धीरे कॉलेजों के विश्वविद्यालय से संबद्ध होने की प्रणाली को खत्म कर उन्हें डिग्री देने वाला स्वायत्त संस्थान बनाया जाएगा। अगले 15 साल बाद कोई कॉलेज संबद्ध नहीं होगा, वह या तो स्वायत्त होगा या फिर किसी विश्वविद्यालय के अधीन होगा। इसके साथ ही उच्च शिक्षा को नियमित करने और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए ‘हायर एजुकेशन कमीशन ऑफ इंडिया’ का गठन किया जाएगा। यह आयोग कानून और मेडिकल शिक्षा को छोड़कर पूरी उच्च शिक्षा की गुणवत्ता और नियमन की जिम्मेदारी संभालेगा। इसके तहत चार अलग-अलग स्वायत्त इकाइयां गुणवत्ता, नियमन, अनुदान और मान्यता के कामकाज को देखेंगी। गुणवत्ता सुनिश्चित करने के नाम पर सालाना इंस्पेक्शन की इजाजत नहीं होगी और पूरी प्रणाली फेसलेस और ऑनलाइन काम करेगी।
मर्जी से चुनें विषय
भविष्य की जरूरत के हिसाब से युवाओं को शिक्षित-प्रशिक्षित कर तैयार करने के लिए पाठ्यक्रम से लेकर पढ़ाई के साल तक को लचीला बनाया गया है। अभी तक कला, विज्ञान और कॉमर्स के विभिन्न कोर्स लिए छात्रों को पहले से तय विषयों को ही चुनना पड़ता था। अब छात्र अपनी मर्जी से कोई विषय चुन सकता है। यहां तक कि भौतिकी विज्ञान का छात्र चाहे तो संगीत को दूसरे विषय के रूप में अपना सकता है। उच्च शिक्षा सचिव अमित खरे ने कहा कि इस लचीलेपन का उद्देश्य छात्रों की प्रतिभा को पूरी तरह से निखरने का मौका देना है, चाहे वह किसी भी क्षेत्र में हो।
शोध के लिए नई प्रणाली
उच्च शिक्षा में शोध और अनुसंधान के लिए गंभीर छात्रों को आकर्षित करने के लिए एक नई प्रणाली बनाई गई है। ऐसे छात्रों के लिए तीन के बजाय चार साल का बीए का कोर्स होगा। उसके बाद वह एक साल का एमए और बाद में सीधे पीएचडी कर सकता है। एमफिल को समाप्त कर दिया गया है। उच्च शिक्षा में शोध और अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए ‘नेशनल रिसर्च फाउंडेशन’ के नाम से एक नई संस्था बनेगी। इसके साथ ही आइआइटी (भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान) और आइआइएम (भारतीय प्रबंधन संस्थान) की तर्ज पर देश में मल्टी डिसिप्लिनरी एजुकेशन एंड रिसर्च यूनिवर्सिटी बनाए जाएंगी, जो विश्व स्तरीय शिक्षा और शोध के केंद्र के रूप में विकसित होंगी।
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