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नई शिक्षा नीति में नहीं थोपी जाएगी कोई भाषा, भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए विशेष संस्थान बनेंगे

नई शिक्षा नीति में नहीं थोपी जाएगी कोई भाषा, भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए विशेष संस्थान बनेंगे

नई दिल्ली: नई शिक्षा नीति में स्थानीय संदर्भो और भाषाओं को पूरा स्थान मिलेगा। इसके तहत स्कूल में पांचवीं कक्षा तक स्थानीय भाषा में पढ़ाने का सुझाव है। वैसे यह भी स्पष्ट किया गया है कि किसी पर कोई भाषा नहीं थोपी जाएगी। गौरतलब है कि त्रिभाषा फामरूला लागू होने के बाद खासकर दक्षिणी राज्यों से विरोध का स्वर उठा था। उसके तहत स्कूलों में एक क्षेत्रीय भाषा, अंग्रेजी और हंिदूी को स्थान दिया गया। विरोध के बाद इसे लचीला कर दिया गया और किसी भाषा को आवश्यक नहीं बनाया गया। यही व्यवस्था आगे भी लागू रहेगी। माना जा रहा है कि इस कदम से नई शिक्षा नीति में भाषाओं को लेकर विवाद उठने की आशंका नहीं रहेगी।

स्थानीय भाषाओं और हुनर को बढ़ावा देने पर भी जोर दिया गया है। पाली, प्राकृत और पर्शियन जैसी लुप्त होती जा रही भाषाओं को बचाने के लिए विशेष कदम भी उठाए गए हैं।

नई शिक्षा नीति में साफ कहा गया है कि इसका उद्देश्य सभी भारतीय भाषाओं के संरक्षण और विकास को बढ़ावा देना है। इसके लिए इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रांसलेशन एंड इंटरपट्रेशन (आइआइटीआइ) बनाने का सुझाव दिया है। इसी तरह पाली, प्राकृत और पर्शियन के लिए अलग से ऐसे ही संस्थान बनाने का भी सुझाव दिया गया है, जिससे इन्हें बढ़ावा मिल सके। नई नीति के मुताबिक संस्कृत जहां हर स्तर पर उपलब्ध होगी, वहीं विदेशी भाषा छात्रों के लिए हायर सेकेंड्री के स्तर से उपलब्ध होगी।

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