बंधुआ मजदूरी है 1000/1500 रुपये वेतन, हाईकोर्ट ने दिया प्रदेश में रसोइयों को न्यूनतम वेतन भुगतान का निर्देश, केंद्र व राज्य सरकार चार माह में वेतन के अंतर का करें निर्धारण
बंधुआ मजदूरी है 1000/1500 रुपये वेतन, हाईकोर्ट ने दिया प्रदेश में रसोइयों को न्यूनतम वेतन भुगतान का निर्देश, केंद्र व राज्य सरकार चार माह में वेतन के अंतर का करें निर्धारण
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सरकारी और अर्द्ध सरकारी प्राइमरी स्कूलों में मिड-डे-मील बनाने वाले रसोइयों को बड़ी राहत दी है। कोर्ट ने प्रदेश के सभी रसोइयों को न्यूनतम वेतन का भुगतान करने का सामान्य समादेश कर पालन सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा है कि मिड-डे-मील रसोइयों को एक हजार रुपये वेतन देना बंधुआ मजदूरी है। इसे संविधान के अनुच्छेद-23 में प्रतिबंधित किया गया है।
हाई कोर्ट ने कहा कि प्रत्येक नागरिक को मूल अधिकार के हनन पर कोर्ट में आने का अधिकार है। वहीं सरकार का भी सांविधानिक दायित्व है कि किसी के मूल अधिकार का हनन न होने पाए। सरकार न्यूनतम वेतन से कम वेतन नहीं दे सकती। कोर्ट ने केंद्र व राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि मिड-डे-मील बनाने वाले प्रदेश के सभी रसोइयों को न्यूनतम वेतन अधिनियम के तहत निर्धारित न्यूनतम वेतन का भुगतान सुनिश्चित करे।
हाई कोर्ट ने सभी जिलाधिकारियो को इस आदेश पर अमल करते हुए रसोइयों को न्यूनतम वेतन का भुगतान करने का निर्देश दिया है। केंद्र और राज्य सरकार को चार माह के भीतर न्यूनतम वेतन तय करके 2005 से अब तक सभी रसोइयों को वेतन अंतर के बकाये का निर्धारण करने का आदेश दिया है। यह महत्वपूर्ण फैसला न्यायमूर्ति पंकज भाटिया ने बेसिक प्राइमरी स्कूल पिनसार बस्ती की मिड-डे-मील रसोइया चंद्रावती देवी की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। याची को एक अगस्त 2019 को हटा दिया गया था। उसे कोर्ट में चुनौती दी गई थी।
याची का कहना था कि उसने एक हजार रुपये मासिक वेतन पर पिछले 14 साल सेवा की है। अब नए शासनादेश से स्कूल में जिसके बच्चे पढ़ रहे हो उसे रसोइया नियुक्ति में वरीयता देने का नियम लागू किया गया है। याची का कोई बच्चा प्राइमरी स्कूल में पढ़ने लायक नहीं है। इससे उसे हटाकर दूसरे को रखा जा रहा है। बताया कि अब वेतन भी 1500 रुपये कर दिया गया है। वह खाना बनाने को तैयार है।
कोर्ट ने कहा कि आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्ति पावरफुल नियोजक के विरुद्ध कानूनी लड़ाई नहीं लड़ सकता। न ही वह बारगेनिंग की स्थिति में होता है। कहा कि संविधान का अनुच्छेद-23 बंधुआ मजदूरी को प्रतिबंधित करता है। एक हजार वेतन बंधुआ मजदूरी ही है। याची 14 साल से शोषण सहने को मजबूर है। सरकार ने अपनी स्थिति का दुरुपयोग किया है। न्यूनतम वेतन से कम वेतन देना मूल अधिकार का हनन है। कोर्ट ने आदेश का पालन करने के लिए प्रति मुख्य सचिव व सभी जिलाधिकारियों को भेजे जाने का निर्देश दिया है।
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