शिक्षामित्रों का इतिहास 1999 से 2020 के झरोखे से
शिक्षामित्रों का इतिहास 1999 से 2020 के झरोखे से
मित्रों इतिहास दो प्रकार का होता है एक अच्छा महसूस कराता है और दूसरा बुरा, यदि हमने दोनो पढ लिए तो शायद कुछ हद तक भविष्य मे सहूलियत और सफलता मिल सकती है! बस इस विषय मे दो बिन्दुओं पर ध्यान देना पडता है! मनुष्य को बुरे इतिहास से सबक लेना पडता है और अच्छे से सीख, लेकिन लोग कहते है बादाम खाओ अक्ल आ
जाएगी हम कहते है धोखा खाओ तो अक्ल चिरस्थाई हो जाती है, लेकिन शिक्षामित्रो का इतिहास भी कम धोखे बाजियो से भरा नही है इसलिए इससे भी सीखने की अपार संभावनाए है! हमने सीखने की शुरूआत 2006 से की 18 अप्रैल 2006 को 2400 रूपये पर अपनी ग्राम पंचायत में शिक्षा मित्र बने, फिर शाही जी की सदर ब्लाक अध्यक्ष की लालबत्ती से सुशोभित हुये, फिलहाल राजनीति का कोई ज्यादा अनुभव नही था क्योंकि मेरे परिवार का इससे दूर - दूर तक कोई लेना देना नही था लेकिन भविष्य की लड़ाई के लिए संगठन जरुरी था और थोडा छात्र राजनीति से जानकारी भी थी, तो कमर कस ली और अपने ब्लाक का नेतृत्व करने लगे तभी 2007 मे तत्कालीन सरकार के कई मंत्रियों के स्वागत समारोह की रूपरेखा प्रान्तीय नेतृत्व ने लखनऊ के लक्ष्मण मेला मैदान मे तय की, हम भी अपने ब्लाक से तीन ब्लोरो मे 25 से 30 शिक्षा मित्रों को लेकर उत्साह के साथ पहुंचे कि आज हमारे मंच पर तत्कालीन बेसिक शिक्षा मंत्री सहित कई बरिष्ठ कैबिनेट मंत्री आयेगे, और वह सच भी हुआ मैदान खचाखच भीड़ से भरा था नेता जी तालिया बचा - बचाकर मंच पर आसीन बरिष्ठ मंत्रिमंडल के सदस्यों का दिल जीत रहे थे, कि मेरे पीछे इतनी भीड़ है शिक्षा मित्र बिचारा इस आस मे गया था कि आज हमारा मानदेय 2400 से बढकर पांच हज़ार हो जाएगा! फिर क्या था मंच पर मंत्रियों की आव भगत शुरू हुई पगडी, चांदी के मुकुट, स्मृति चिन्ह फूल माला और बीच - बीच मे नेता जी भीड़ से जिन्दाबाद के मारे भी लगवा रहे थे लेकिन यह क्या कार्यक्रम समापन की ओर था लालबत्ती लगी गाडियां शायरन बजाती हुई चली गई! 100 रूपये भी बढाने की घोषणा नही की गई हमारे नेता जी को खुशी इस बात की थी, काम हो गया सरकार मे हमारी पैठ भीड तंत्र से बन गई! लेकिन बिचारे भीड़ ले जाने बाले हम जैसे ब्लाक अध्यक्षों को आम शिक्षा मित्र से गालियां सुननी पडी, पैसा भी खराब गया समय भी, मिला क्या बाबा जी का........, हमने अपने पद से बापस आकर इस्तीफा दे दिया! और फिर क्या था गाजी जी के संगठन मे लालबत्ती मिल गयी, क्योंकि भविष्य की बात थी संघर्ष तो करना ही था, धीरे - धीरे समय बीतता गया पांच बर्ष मे तत्कालीन बसपा सरकार ने पांच बार लखनऊ मे लठियाया! तभी गाजी जी ने विधान सभा घेराव का एलान कर दिया! जमकर पिटाई हो गई थी उसी शाम हम भी लखनऊ से चले आये थे, कडाके की ठंण्ड थी, हमारे ही संगठन के सभी नेता लखनऊ से चले गए थे हमे साथियो से पता चला था शाही जी अभी भी लखनऊ मे मोर्चा संभाले है! उनका कहना था हम तभी जाऐगे जव हमारी मॉग पूरी हो जाऐगी! 8 दिन धरना चला हजारों वार हाथ कमर और सिर पर रखवाए गये, हम भी भविष्य की बात थी संगठन वाद से ऊपर उठकर जनपद के साथियों के साथ लखनऊ पहुंच गये थे, यह नारा लगाते हुये आवाज दो हम एक है यह कहते - कहते 5 दिन बाद घर लौट आए! लेकिन कुछ न हुआ हां एक रजिस्टर वहां जरूर भर गया चंदा देने वालो के नामो से, अव क्या था शाही को धरने के फायदे का पता चल गया था वस फिर धरने चलते रहे चंदा उगता रहा फिर 2009 मे नियमतीकरण की मांग ने जोर पकडा खूव चंदा इकट्टा हुआ रशीदे कटी गाजी जी की तरफ से हमने भी कटवा डाली जिले से लेकर प्रदेश तक भीषण संघर्ष हुआ कई जनपदों मे रेल रोकी गई तो लाठी चार्ज हो गया भाषण वाले तो भाग गये आम शिक्षा मित्रों के पैर टूटे हमारा भी पिछवाडा स्याह कर दिया गया! पुलिस ने लखनऊ मे 41 साथियों को पकडा कुछ थाने से छूट गए कई जेल चले गए बडी़ मुश्किल से बिचारो ने बेल करा पाई पैसा खुद देकर कई जनपदों मे मुकदमा आज भी चल रहे है! फिर मांगे चलती रही 2010 मे शहीद स्मारक पर जवरदस्त तोड फोड हुई जनपदों से लिस्टे बनी तोड फोड करने वालो की सेवा समाप्ति हेतु निर्देश दिए गए वडी मुस्किल से मामला रफा दफा कराया गया था फिर rte एक्ट 2009 मे केन्द्र से लागू हुआ! उसमे जब संशोधन केन्द्र मे चल रहा था तब प्रदेश के दोनो नेता जनपदीय पदाधिकारियो के साथ मंच साझा कर रहे थे अगर तभी केन्द्र सरकार मे पैरवी करके शिक्षामित्रों को rte एक्ट मे शामिल करा लिया गया होता तो आज यह दशा नही होती, नियम बदले कानून बदल गये 2011 मे अप्रशिक्षित शिक्षा मित्रों को प्रशिक्षित करने के लिए प्रशिक्षण के निर्देश दिये गये, प्रथम बैच का शुरू हुआ लेकिन नौकरी की गारंन्टी नही थी आरटीई एक्ट के तहत केवल प्रशिक्षित किया जाना था गाजी जी ने 2012 के बिधानसभा चुनाव से मांगपत्र मे वादा हेतु मीटिंग रखी हम भी लखनऊ पहुंचे तय हुआ सभी दलों से वात की जाए उनके दप्तर गये लेकिन किसी ने हमे भाव नहीं दिया तव नेता जी से वात की गई ललितपुर के सपा प्रत्यासी गुड्डू राजा अखिलेश जी के क्लास मेट थे उनसे लिंक लगाई गई! वात हो गयी, घोषणा पत्र में वायदा हो गया सपा ने कहा हमारी सरकार वनी शिक्षा मित्रों को अध्यापक बनायेगे हम उस समय भी गाजी संगठन मे ब्लाक अध्यक्ष ही थे, तभी गांधी सभागार लखनऊ मे सरकार के स्वागत का कार्यक्रम रखा गया कुछ चंदा भी देना था हमने भी 50/50 रूपये इकट्ठा किया था और एक बस भरकर हम लखनऊ पहुंच गये खूब आव भगत हुई मंत्री जी की, उसके बाद फिर लखनऊ के ज्योतिवा फुले पार्क मे पुनः शक्ति प्रदर्शन हुआ मंत्री जी को फिर माला पहनाने का मौका मिला! तब नियामावली वननी थी तत्कालीन सचिव ने कहा समायोजन विना टीईटी के नही हो पाऐगा! गाजी जी तैयार थे लगभग सव तैयार थे, लगाओ टीईटी विभागीय करा लो शिक्षा मित्रों की सरकार थी दो बर्ष मे सभी टेट पास करके अध्यापक बन जाते लेकिन तभी आचानक शाही जी ने गोमती किनारे धरना लगा दिया कि हमे फांसी मंजूर टेट नही तब आरोप लगाया कि सरकार वादा पूरा करना नही चाहती इसलिए बहाने बना रही है! तत्कालीन मंत्री जी को पता चला पूंछे क्यो भाई आप लोगो मे दो संगठन है क्या?? गाजी जी के लोगो ने कहा नही हम सव एक है तब वह बोले फिर यह धरना कौन दे रहा है तो फिर कहना पडा कि वो दूसरा संगठन है उन्होने कहा तव तो हम उनसे भी मिलेगे विरोध के वीच कार्य करना ठीक नही है शाही की मुलाकाते होने लगी, फिर क्या था मंत्री जी को वोट बैंक साधना, समायोजन बचे या भाड़ मे जाये, तत्कालीन सचिव को हटा दिया गया, नये सचिव बने उन्होंने विना टीईटी की नियामावली वनाई! उत्तर प्रदेश के सभी जनपदों के शिक्षा मित्रों को मजा आ रहा था लेकिन यह नही मालूम था मिठाई के डिब्बे में काला नाग मिलने जा रहा है, जो कभी डस सकता है, तब बेसिक शिक्षा नियमावली के नियमों से हटकर समायोजन हुआ इसी बीच बीटीसी/बीएड बालो की तरफ से समायोजन पर मुकदमा भी हो गया हाईकोर्ट इलाहाबाद व लखनऊ बेंच मे तभी एक प्रान्तीय मीटिंग मे कोर्ट मे पैरवी हेतु सहयोग की अपील की गयी, प्रथम बैच का समायोजित हो चुका था, वह हर माह वेतन से कुछ हिस्सा दोनो संगठनों को भेजते रहे, तभी द्वितीय वैच की बारी थी तब सबने नेताओं से द्वितीय वैच के समायोजन की पैरवी हेतु कहा लेकिन हर बार चंदे की वात होती थी, तव पैरवी की जायेगी! कितनी वार चंदा दें लेकिन चंदे की लत ऐसी थी कि चंदा नही तो काम नही उसी बीच अनिल यादव ने संगठन छोड दिया और नया संगठन बना लिया और द्वितीय बैच के समायोजन हेतु लखनऊ मे प्रदर्शन की घोषणा कर दी सभी जनपदों से साथी जाने को एकत्रित होने लगे समायोजन की मांग सरकार से होने लगी तभी गाजी जी ने सरकार तक सूचना पहुंचा दी और अनिल यादव के पांच लोगो के फोन को सर्विलांस पर लगवा दिया गया! पल - पल की जानकारी सचिव तक पहुंच रही थी इससे पहले कि लखनऊ मे कुछ करते लखनऊ से फोन आया सचिव साहव पांचों लोगो को वुला रहे है अनिल यादव पहुंचे जमकर खिचाई हुई! आनन फानन में रैली करने की वात से अनिल यादव को मुकरना पडा लेकिन सरकार को झुकना पडा और पांच दिन मे ही द्वितीय वैच के समायोजन का आदेश हो गया दूसरे बैच का समायोजन शुरू हो गया लेकिन कुछ जनपदों मे जनपदीय अधिकारियों की गलत मंशा से कुछ साथी समायोजन से अवशेष रह गये ऊधर हाईकोर्ट इलाहाबाद व लखनऊ बेंच मे मुकदमा चल रहा था! गाजी, शाही का खूव चंदे का हल्ला हो रहा था हम भी अपने जनपद से भेजते रहे क्योंकि भविष्य की बात थी लेकिन क्या पता था जिस सरकार ने समायोजन रूपी मकान खड़ा किया था उसकी नींव इतनी कमजोर थी, कि उनके ही समय मे 12 सितम्बर 2015 को सबकुछ इलाहाबाद हाईकोर्ट से बर्बाद हो गया था और दोनो नेता गंगा मे डुबकी लगा कर आ गये थे, बस दो फोटो डाल देते थे व्हाटसएप पर इलाहावाद मे पैरवी करते हुए यूपी मे कोहराम मच गया ब्लाक के लोग हमारे घर आ गये किसी तरह स्थित को संभाला गया आन्दोलन हुआ सरकार सुप्रीम कोर्ट में नही जाना चाहती थी, क्योकि समायोजन नीतिगत नही था, सरकार अन्य प्रदेशों के मांडल पर बिचार कर रही थी, लेकिन वहां भी दोनो संगठन सरकार से पहले सुप्रीम कोर्ट पहुंच गये, तब मजबूरी मे सरकार को भी जाना पडा़, और 8 दिसम्बर को वहां से बीच सत्र मे बच्चों की शिक्षा व्यवस्था प्रभावित ना हो इस आधार पर सचिव व सरकार की तरफ से पैरवी कर्ता वकील दुष्यन्त दवे की दलील पर स्टे हो गया वेतन मिलने लगा! अव दौर शुरू हुआ सुप्रीम कोर्ट की लडाई का हमने भी गाजी जी के संगठन से अपने पद से इस्तीफा दे दिया क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में पैरवी राम भरोसे देखकर हमारे जमीर ने अपने साथियों से ले ले जाकर देने की गवाही नही दी, तब अनिल यादव जी से मुलाकात हुई और उन्होने हमे संगठन का जिलाध्यक्ष नियुक्त किया संगठन छोटा था लेकिन हमलोगो ने पहले तो कोर्ट कचहरी से दूर रहना ही उचित समझा लेकिन तब बाद मे आरोप लगा कि अनिल यादव कोर्ट मे पार्टी नही तब तय हुआ कि अपने सीमित संसाधनों मे सुप्रीम कोर्ट में slp डालकर पैरवी की जाये और अपने जनपद के मात्र 10 से 15 साथियों से सहयोग लेकर हर डेट पर दिल्ली पैरवी करने का प्रयास करते रहे, हाईकोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट में दो बर्ष तक डेट बढती रही सुनबाई नही हुई लेकिन दोनो बडे संगठन जिन्हे सबसे ज्यादा करोडो चन्दा मिला जब अन्तिम दौर मे केस पहुंचा लगातार सुनबाई शुरू हुई शिक्षा मित्रों की दशा उस समय कश्मीर मे फंसी भारतीय सेना जैसी थी जहॉ सामने से (विरोधी टैटू) आतंकी गोली वरसा रहे थे, और पीछे से कश्मीरी पत्थर (संगठन धन चूसते रहे) बरषा रहे थे, सुनबाई के समय शाही, गाजी दुकाने चलाते रहे जनपदीय ठेकेदार जनपद से ले ले गये सेल्फी न्यायालय के सामने खड़े होकर ली धर धर आये, वकील कौन खड़ा है पूछा ही नही लेकिन तब तक कई टीमों ने जन्म ले लिया था, और उसमे एक SST भी थी जो सही पैरवी कर रही थी, और जहां तक हमने वहां आंखों से देखा वह बिचारे मेहनत से पैरवी कर रहे थे, लेकिन वह भी लीक से हटकर काम नही करना चाह रहे थे और जानबूझ 1.72 लाख की आवाज़ उठाते रहे अगर टेट पास शिक्षामित्रों व 1.24 लाख शिक्षामित्रों को आधार बनाकर पैरवी किये होते तो इतनी बूरी दशा सुप्रीम कोर्ट से नही होती! उस समय सोशल मीडिया पर धूम मचती थी, मोवाईल की दलीलो से कोर्ट हिलती रहती थी, जवकि हकीकत कुछ और ही थी, फिर एक दिन 25 जुलाई 2017 को डेढ वजे हम जहॉ से चले थे वहीं पहुंच गए बस एक किरण वेटेज की वची थी क्योंकि कोर्ट ने हाईकोर्ट के निर्णय मे कोई कमी नही पाई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से ही यूपी के शिक्षा मित्रों के सम्बन्ध मे एक किरण जरूर जगी थी, क्योंकि हाईकोर्ट ने तो सबकुछ समाप्त कर दिया था वहां से कम से कम जो पूर्ण योग्यता रखने बाले थे उनके लिए रास्ता मिला था! लेकिन तब भी सभी संगठनों ने सीख नही ली और यह भूल गये कि अब सत्ता परिवर्तन हो चुका है! नियम कानून से हटकर सरकार कुछ नही करेगी क्योंकि देश की सर्वोच्च न्यायालय का फैसला है गांव की पंचायत का नही लेकिन तब जिस सरकार की मर्सी पर हमारे लिए नीति निर्माण होना था उसे ही अयोग्यता का परिचय देकर अपशब्द सोशल मीडिया से लेकर जनपदीय धरना प्रदर्शन व लखनऊ व दिल्ली, बनारस मे बोलने का काम किया गया! फिर क्या था बर्तमान सरकार पहले से ही शिक्षा मित्रों को एक पार्टी का एजेन्ट समझती थी हमारे अयोग्य नेतृत्व के दिशाहीन संघर्ष ने उसपर पूरी तरह मोहर लगा दी, जबकि शासन स्तर पर बिभागीय सचिव की 31 जुलाई की वार्ता मे अगर यह नेता सहमति दे देते, तो इतनी बूरी दशा नही होती, लेकिन लोगो को ईट से ईट बजाने का शौक था हम भी सचिव की वार्ता मे जाते थे लेकिन जब वहां देखा कि जिसे शिक्षा मित्रों ने नेतृत्व अपना सौपा है वह इस लायक ही नही है! कही आश्रम पद्धति लेकर जाते थे जिसमे छ माह मे टेट अनिवार्य है कही समान कार्य का समान वेतन जबकि यह भूल जाते थे कि उसमे समान योग्यता भी होती है! कभी आधा देश मांगते थे, तब डूबती नाव मे तैराको को बचाना ही सही दिशा थी और तब हमने 30 हजार टेट पास शिक्षामित्रों के हितों के लिए कमर कसी, और मुख्यमंत्री जी से भेट की उन्होंने कहा ठीक है, आपलोग टेट पास को इस धरने से अलग करो, जब हमे लगेगा तब हम आपलोगों के हित मे निर्णय लेगे, और लेकिन दुर्भाग्य से टेट पास का कुनबा जुड़ न सका, और मेरी ही टांग खींचने लगे, फिर बनारस कांड के बाद 25 अंक वेटेज को समाप्त करने के लिए सुपर टेट लग गयी, और आज हम कह सकते है कि सरकार के कोप भाजन से हम उन्हें बाहर निकालने मे सफल न हुये, क्योकि कुछ लोगो के कृत्यो से टेट पास को भी ईनाम मे एक और लिखित परीक्षा दे दी गयी थी, हम फिर भी प्रयास करते रहे, अंत मे मामला कोर्ट पहुंचा और नये नये दुकनदार जो पहले टेट के नाम से भी डरते थे, चन्दे के लिये विधिक बनकर आगे आ गये, और दलीले दी जाने लगी और रोज रोज न्यायालय मे भेष बदल कर नई नई टीम आने लगी, जबकि यह भूल गये लडाई सरकार से है, और जिसका परिणाम सामने है, दोनो अटेम्ट निकल गये, कुछ पैरोकार मास्टर बनकर वेतन ले रहे है, कुछ बिचारे प्राप्त धन मे ही खुश है, जबकि यह सच है, 25 जुलाई 2017 के बाद या तो रिटे वहाँ से खारिज की गयी, या घुमा फिराकर सब सरकार पर डाल दिया गया, आम शिक्षा मित्र कभी झूठे घमंड को त्यागकर सरकार से निवेदन न कर सका, वह सोसल मीडिया पर सरकार को अपशब्द ही बोलने मे खुश है,जबकि 2022 तक सरकार पूर्ण बहुमत की है और आगे भी मुझे किसी एंगल से जाती नही दिख रही, इसलिये अगर यही हाल रहा था तो 31 मार्च 2022 के बाद नई शिक्षा नीति के संसोधित नियम के बिन्दुओं के बारे मे तो पता ही होगा कि योग्य शिक्षकों को लगाकर धीरे धीरे.................को हटाने का प्रावधान है! इसलिए नेताओ की चमचागीरि बन्द करके अब भी आपलोग सुधार लाये, मुख्यमंत्री जी ने भरोसा दिया है कि मार्च के बजट सत्र में शिक्षामित्रों के लिये नये पैकज के लिये प्रयास करेगे! और 2022 से पहले प्रयास करेंगे कि केन्द्र व राज्य सरकार मिलकर जो शिक्षामित्र रह गये उनके भविष्य के लिए कुछ व्यवस्था की जा सके! और हमे पूरा भरोसा है! अपने आप पर और अब तक हुई शासन स्तर पर बिभागीय अधिकारियों व माननीयों से वार्ता से की हमारे अनुरोध को जरूर स्वीकार किया जायेगा! लेकिन उसके लिये भौडापंती बन्द हो और मुख्यमंत्री जी को बिश्वास मे लिया जाये, यह काम अकेला कोई नही कर सकता, सभी आम शिक्षा मित्रों को आगे आना होगा! धन्यवाद!!
जाएगी हम कहते है धोखा खाओ तो अक्ल चिरस्थाई हो जाती है, लेकिन शिक्षामित्रो का इतिहास भी कम धोखे बाजियो से भरा नही है इसलिए इससे भी सीखने की अपार संभावनाए है! हमने सीखने की शुरूआत 2006 से की 18 अप्रैल 2006 को 2400 रूपये पर अपनी ग्राम पंचायत में शिक्षा मित्र बने, फिर शाही जी की सदर ब्लाक अध्यक्ष की लालबत्ती से सुशोभित हुये, फिलहाल राजनीति का कोई ज्यादा अनुभव नही था क्योंकि मेरे परिवार का इससे दूर - दूर तक कोई लेना देना नही था लेकिन भविष्य की लड़ाई के लिए संगठन जरुरी था और थोडा छात्र राजनीति से जानकारी भी थी, तो कमर कस ली और अपने ब्लाक का नेतृत्व करने लगे तभी 2007 मे तत्कालीन सरकार के कई मंत्रियों के स्वागत समारोह की रूपरेखा प्रान्तीय नेतृत्व ने लखनऊ के लक्ष्मण मेला मैदान मे तय की, हम भी अपने ब्लाक से तीन ब्लोरो मे 25 से 30 शिक्षा मित्रों को लेकर उत्साह के साथ पहुंचे कि आज हमारे मंच पर तत्कालीन बेसिक शिक्षा मंत्री सहित कई बरिष्ठ कैबिनेट मंत्री आयेगे, और वह सच भी हुआ मैदान खचाखच भीड़ से भरा था नेता जी तालिया बचा - बचाकर मंच पर आसीन बरिष्ठ मंत्रिमंडल के सदस्यों का दिल जीत रहे थे, कि मेरे पीछे इतनी भीड़ है शिक्षा मित्र बिचारा इस आस मे गया था कि आज हमारा मानदेय 2400 से बढकर पांच हज़ार हो जाएगा! फिर क्या था मंच पर मंत्रियों की आव भगत शुरू हुई पगडी, चांदी के मुकुट, स्मृति चिन्ह फूल माला और बीच - बीच मे नेता जी भीड़ से जिन्दाबाद के मारे भी लगवा रहे थे लेकिन यह क्या कार्यक्रम समापन की ओर था लालबत्ती लगी गाडियां शायरन बजाती हुई चली गई! 100 रूपये भी बढाने की घोषणा नही की गई हमारे नेता जी को खुशी इस बात की थी, काम हो गया सरकार मे हमारी पैठ भीड तंत्र से बन गई! लेकिन बिचारे भीड़ ले जाने बाले हम जैसे ब्लाक अध्यक्षों को आम शिक्षा मित्र से गालियां सुननी पडी, पैसा भी खराब गया समय भी, मिला क्या बाबा जी का........, हमने अपने पद से बापस आकर इस्तीफा दे दिया! और फिर क्या था गाजी जी के संगठन मे लालबत्ती मिल गयी, क्योंकि भविष्य की बात थी संघर्ष तो करना ही था, धीरे - धीरे समय बीतता गया पांच बर्ष मे तत्कालीन बसपा सरकार ने पांच बार लखनऊ मे लठियाया! तभी गाजी जी ने विधान सभा घेराव का एलान कर दिया! जमकर पिटाई हो गई थी उसी शाम हम भी लखनऊ से चले आये थे, कडाके की ठंण्ड थी, हमारे ही संगठन के सभी नेता लखनऊ से चले गए थे हमे साथियो से पता चला था शाही जी अभी भी लखनऊ मे मोर्चा संभाले है! उनका कहना था हम तभी जाऐगे जव हमारी मॉग पूरी हो जाऐगी! 8 दिन धरना चला हजारों वार हाथ कमर और सिर पर रखवाए गये, हम भी भविष्य की बात थी संगठन वाद से ऊपर उठकर जनपद के साथियों के साथ लखनऊ पहुंच गये थे, यह नारा लगाते हुये आवाज दो हम एक है यह कहते - कहते 5 दिन बाद घर लौट आए! लेकिन कुछ न हुआ हां एक रजिस्टर वहां जरूर भर गया चंदा देने वालो के नामो से, अव क्या था शाही को धरने के फायदे का पता चल गया था वस फिर धरने चलते रहे चंदा उगता रहा फिर 2009 मे नियमतीकरण की मांग ने जोर पकडा खूव चंदा इकट्टा हुआ रशीदे कटी गाजी जी की तरफ से हमने भी कटवा डाली जिले से लेकर प्रदेश तक भीषण संघर्ष हुआ कई जनपदों मे रेल रोकी गई तो लाठी चार्ज हो गया भाषण वाले तो भाग गये आम शिक्षा मित्रों के पैर टूटे हमारा भी पिछवाडा स्याह कर दिया गया! पुलिस ने लखनऊ मे 41 साथियों को पकडा कुछ थाने से छूट गए कई जेल चले गए बडी़ मुश्किल से बिचारो ने बेल करा पाई पैसा खुद देकर कई जनपदों मे मुकदमा आज भी चल रहे है! फिर मांगे चलती रही 2010 मे शहीद स्मारक पर जवरदस्त तोड फोड हुई जनपदों से लिस्टे बनी तोड फोड करने वालो की सेवा समाप्ति हेतु निर्देश दिए गए वडी मुस्किल से मामला रफा दफा कराया गया था फिर rte एक्ट 2009 मे केन्द्र से लागू हुआ! उसमे जब संशोधन केन्द्र मे चल रहा था तब प्रदेश के दोनो नेता जनपदीय पदाधिकारियो के साथ मंच साझा कर रहे थे अगर तभी केन्द्र सरकार मे पैरवी करके शिक्षामित्रों को rte एक्ट मे शामिल करा लिया गया होता तो आज यह दशा नही होती, नियम बदले कानून बदल गये 2011 मे अप्रशिक्षित शिक्षा मित्रों को प्रशिक्षित करने के लिए प्रशिक्षण के निर्देश दिये गये, प्रथम बैच का शुरू हुआ लेकिन नौकरी की गारंन्टी नही थी आरटीई एक्ट के तहत केवल प्रशिक्षित किया जाना था गाजी जी ने 2012 के बिधानसभा चुनाव से मांगपत्र मे वादा हेतु मीटिंग रखी हम भी लखनऊ पहुंचे तय हुआ सभी दलों से वात की जाए उनके दप्तर गये लेकिन किसी ने हमे भाव नहीं दिया तव नेता जी से वात की गई ललितपुर के सपा प्रत्यासी गुड्डू राजा अखिलेश जी के क्लास मेट थे उनसे लिंक लगाई गई! वात हो गयी, घोषणा पत्र में वायदा हो गया सपा ने कहा हमारी सरकार वनी शिक्षा मित्रों को अध्यापक बनायेगे हम उस समय भी गाजी संगठन मे ब्लाक अध्यक्ष ही थे, तभी गांधी सभागार लखनऊ मे सरकार के स्वागत का कार्यक्रम रखा गया कुछ चंदा भी देना था हमने भी 50/50 रूपये इकट्ठा किया था और एक बस भरकर हम लखनऊ पहुंच गये खूब आव भगत हुई मंत्री जी की, उसके बाद फिर लखनऊ के ज्योतिवा फुले पार्क मे पुनः शक्ति प्रदर्शन हुआ मंत्री जी को फिर माला पहनाने का मौका मिला! तब नियामावली वननी थी तत्कालीन सचिव ने कहा समायोजन विना टीईटी के नही हो पाऐगा! गाजी जी तैयार थे लगभग सव तैयार थे, लगाओ टीईटी विभागीय करा लो शिक्षा मित्रों की सरकार थी दो बर्ष मे सभी टेट पास करके अध्यापक बन जाते लेकिन तभी आचानक शाही जी ने गोमती किनारे धरना लगा दिया कि हमे फांसी मंजूर टेट नही तब आरोप लगाया कि सरकार वादा पूरा करना नही चाहती इसलिए बहाने बना रही है! तत्कालीन मंत्री जी को पता चला पूंछे क्यो भाई आप लोगो मे दो संगठन है क्या?? गाजी जी के लोगो ने कहा नही हम सव एक है तब वह बोले फिर यह धरना कौन दे रहा है तो फिर कहना पडा कि वो दूसरा संगठन है उन्होने कहा तव तो हम उनसे भी मिलेगे विरोध के वीच कार्य करना ठीक नही है शाही की मुलाकाते होने लगी, फिर क्या था मंत्री जी को वोट बैंक साधना, समायोजन बचे या भाड़ मे जाये, तत्कालीन सचिव को हटा दिया गया, नये सचिव बने उन्होंने विना टीईटी की नियामावली वनाई! उत्तर प्रदेश के सभी जनपदों के शिक्षा मित्रों को मजा आ रहा था लेकिन यह नही मालूम था मिठाई के डिब्बे में काला नाग मिलने जा रहा है, जो कभी डस सकता है, तब बेसिक शिक्षा नियमावली के नियमों से हटकर समायोजन हुआ इसी बीच बीटीसी/बीएड बालो की तरफ से समायोजन पर मुकदमा भी हो गया हाईकोर्ट इलाहाबाद व लखनऊ बेंच मे तभी एक प्रान्तीय मीटिंग मे कोर्ट मे पैरवी हेतु सहयोग की अपील की गयी, प्रथम बैच का समायोजित हो चुका था, वह हर माह वेतन से कुछ हिस्सा दोनो संगठनों को भेजते रहे, तभी द्वितीय वैच की बारी थी तब सबने नेताओं से द्वितीय वैच के समायोजन की पैरवी हेतु कहा लेकिन हर बार चंदे की वात होती थी, तव पैरवी की जायेगी! कितनी वार चंदा दें लेकिन चंदे की लत ऐसी थी कि चंदा नही तो काम नही उसी बीच अनिल यादव ने संगठन छोड दिया और नया संगठन बना लिया और द्वितीय बैच के समायोजन हेतु लखनऊ मे प्रदर्शन की घोषणा कर दी सभी जनपदों से साथी जाने को एकत्रित होने लगे समायोजन की मांग सरकार से होने लगी तभी गाजी जी ने सरकार तक सूचना पहुंचा दी और अनिल यादव के पांच लोगो के फोन को सर्विलांस पर लगवा दिया गया! पल - पल की जानकारी सचिव तक पहुंच रही थी इससे पहले कि लखनऊ मे कुछ करते लखनऊ से फोन आया सचिव साहव पांचों लोगो को वुला रहे है अनिल यादव पहुंचे जमकर खिचाई हुई! आनन फानन में रैली करने की वात से अनिल यादव को मुकरना पडा लेकिन सरकार को झुकना पडा और पांच दिन मे ही द्वितीय वैच के समायोजन का आदेश हो गया दूसरे बैच का समायोजन शुरू हो गया लेकिन कुछ जनपदों मे जनपदीय अधिकारियों की गलत मंशा से कुछ साथी समायोजन से अवशेष रह गये ऊधर हाईकोर्ट इलाहाबाद व लखनऊ बेंच मे मुकदमा चल रहा था! गाजी, शाही का खूव चंदे का हल्ला हो रहा था हम भी अपने जनपद से भेजते रहे क्योंकि भविष्य की बात थी लेकिन क्या पता था जिस सरकार ने समायोजन रूपी मकान खड़ा किया था उसकी नींव इतनी कमजोर थी, कि उनके ही समय मे 12 सितम्बर 2015 को सबकुछ इलाहाबाद हाईकोर्ट से बर्बाद हो गया था और दोनो नेता गंगा मे डुबकी लगा कर आ गये थे, बस दो फोटो डाल देते थे व्हाटसएप पर इलाहावाद मे पैरवी करते हुए यूपी मे कोहराम मच गया ब्लाक के लोग हमारे घर आ गये किसी तरह स्थित को संभाला गया आन्दोलन हुआ सरकार सुप्रीम कोर्ट में नही जाना चाहती थी, क्योकि समायोजन नीतिगत नही था, सरकार अन्य प्रदेशों के मांडल पर बिचार कर रही थी, लेकिन वहां भी दोनो संगठन सरकार से पहले सुप्रीम कोर्ट पहुंच गये, तब मजबूरी मे सरकार को भी जाना पडा़, और 8 दिसम्बर को वहां से बीच सत्र मे बच्चों की शिक्षा व्यवस्था प्रभावित ना हो इस आधार पर सचिव व सरकार की तरफ से पैरवी कर्ता वकील दुष्यन्त दवे की दलील पर स्टे हो गया वेतन मिलने लगा! अव दौर शुरू हुआ सुप्रीम कोर्ट की लडाई का हमने भी गाजी जी के संगठन से अपने पद से इस्तीफा दे दिया क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में पैरवी राम भरोसे देखकर हमारे जमीर ने अपने साथियों से ले ले जाकर देने की गवाही नही दी, तब अनिल यादव जी से मुलाकात हुई और उन्होने हमे संगठन का जिलाध्यक्ष नियुक्त किया संगठन छोटा था लेकिन हमलोगो ने पहले तो कोर्ट कचहरी से दूर रहना ही उचित समझा लेकिन तब बाद मे आरोप लगा कि अनिल यादव कोर्ट मे पार्टी नही तब तय हुआ कि अपने सीमित संसाधनों मे सुप्रीम कोर्ट में slp डालकर पैरवी की जाये और अपने जनपद के मात्र 10 से 15 साथियों से सहयोग लेकर हर डेट पर दिल्ली पैरवी करने का प्रयास करते रहे, हाईकोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट में दो बर्ष तक डेट बढती रही सुनबाई नही हुई लेकिन दोनो बडे संगठन जिन्हे सबसे ज्यादा करोडो चन्दा मिला जब अन्तिम दौर मे केस पहुंचा लगातार सुनबाई शुरू हुई शिक्षा मित्रों की दशा उस समय कश्मीर मे फंसी भारतीय सेना जैसी थी जहॉ सामने से (विरोधी टैटू) आतंकी गोली वरसा रहे थे, और पीछे से कश्मीरी पत्थर (संगठन धन चूसते रहे) बरषा रहे थे, सुनबाई के समय शाही, गाजी दुकाने चलाते रहे जनपदीय ठेकेदार जनपद से ले ले गये सेल्फी न्यायालय के सामने खड़े होकर ली धर धर आये, वकील कौन खड़ा है पूछा ही नही लेकिन तब तक कई टीमों ने जन्म ले लिया था, और उसमे एक SST भी थी जो सही पैरवी कर रही थी, और जहां तक हमने वहां आंखों से देखा वह बिचारे मेहनत से पैरवी कर रहे थे, लेकिन वह भी लीक से हटकर काम नही करना चाह रहे थे और जानबूझ 1.72 लाख की आवाज़ उठाते रहे अगर टेट पास शिक्षामित्रों व 1.24 लाख शिक्षामित्रों को आधार बनाकर पैरवी किये होते तो इतनी बूरी दशा सुप्रीम कोर्ट से नही होती! उस समय सोशल मीडिया पर धूम मचती थी, मोवाईल की दलीलो से कोर्ट हिलती रहती थी, जवकि हकीकत कुछ और ही थी, फिर एक दिन 25 जुलाई 2017 को डेढ वजे हम जहॉ से चले थे वहीं पहुंच गए बस एक किरण वेटेज की वची थी क्योंकि कोर्ट ने हाईकोर्ट के निर्णय मे कोई कमी नही पाई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से ही यूपी के शिक्षा मित्रों के सम्बन्ध मे एक किरण जरूर जगी थी, क्योंकि हाईकोर्ट ने तो सबकुछ समाप्त कर दिया था वहां से कम से कम जो पूर्ण योग्यता रखने बाले थे उनके लिए रास्ता मिला था! लेकिन तब भी सभी संगठनों ने सीख नही ली और यह भूल गये कि अब सत्ता परिवर्तन हो चुका है! नियम कानून से हटकर सरकार कुछ नही करेगी क्योंकि देश की सर्वोच्च न्यायालय का फैसला है गांव की पंचायत का नही लेकिन तब जिस सरकार की मर्सी पर हमारे लिए नीति निर्माण होना था उसे ही अयोग्यता का परिचय देकर अपशब्द सोशल मीडिया से लेकर जनपदीय धरना प्रदर्शन व लखनऊ व दिल्ली, बनारस मे बोलने का काम किया गया! फिर क्या था बर्तमान सरकार पहले से ही शिक्षा मित्रों को एक पार्टी का एजेन्ट समझती थी हमारे अयोग्य नेतृत्व के दिशाहीन संघर्ष ने उसपर पूरी तरह मोहर लगा दी, जबकि शासन स्तर पर बिभागीय सचिव की 31 जुलाई की वार्ता मे अगर यह नेता सहमति दे देते, तो इतनी बूरी दशा नही होती, लेकिन लोगो को ईट से ईट बजाने का शौक था हम भी सचिव की वार्ता मे जाते थे लेकिन जब वहां देखा कि जिसे शिक्षा मित्रों ने नेतृत्व अपना सौपा है वह इस लायक ही नही है! कही आश्रम पद्धति लेकर जाते थे जिसमे छ माह मे टेट अनिवार्य है कही समान कार्य का समान वेतन जबकि यह भूल जाते थे कि उसमे समान योग्यता भी होती है! कभी आधा देश मांगते थे, तब डूबती नाव मे तैराको को बचाना ही सही दिशा थी और तब हमने 30 हजार टेट पास शिक्षामित्रों के हितों के लिए कमर कसी, और मुख्यमंत्री जी से भेट की उन्होंने कहा ठीक है, आपलोग टेट पास को इस धरने से अलग करो, जब हमे लगेगा तब हम आपलोगों के हित मे निर्णय लेगे, और लेकिन दुर्भाग्य से टेट पास का कुनबा जुड़ न सका, और मेरी ही टांग खींचने लगे, फिर बनारस कांड के बाद 25 अंक वेटेज को समाप्त करने के लिए सुपर टेट लग गयी, और आज हम कह सकते है कि सरकार के कोप भाजन से हम उन्हें बाहर निकालने मे सफल न हुये, क्योकि कुछ लोगो के कृत्यो से टेट पास को भी ईनाम मे एक और लिखित परीक्षा दे दी गयी थी, हम फिर भी प्रयास करते रहे, अंत मे मामला कोर्ट पहुंचा और नये नये दुकनदार जो पहले टेट के नाम से भी डरते थे, चन्दे के लिये विधिक बनकर आगे आ गये, और दलीले दी जाने लगी और रोज रोज न्यायालय मे भेष बदल कर नई नई टीम आने लगी, जबकि यह भूल गये लडाई सरकार से है, और जिसका परिणाम सामने है, दोनो अटेम्ट निकल गये, कुछ पैरोकार मास्टर बनकर वेतन ले रहे है, कुछ बिचारे प्राप्त धन मे ही खुश है, जबकि यह सच है, 25 जुलाई 2017 के बाद या तो रिटे वहाँ से खारिज की गयी, या घुमा फिराकर सब सरकार पर डाल दिया गया, आम शिक्षा मित्र कभी झूठे घमंड को त्यागकर सरकार से निवेदन न कर सका, वह सोसल मीडिया पर सरकार को अपशब्द ही बोलने मे खुश है,जबकि 2022 तक सरकार पूर्ण बहुमत की है और आगे भी मुझे किसी एंगल से जाती नही दिख रही, इसलिये अगर यही हाल रहा था तो 31 मार्च 2022 के बाद नई शिक्षा नीति के संसोधित नियम के बिन्दुओं के बारे मे तो पता ही होगा कि योग्य शिक्षकों को लगाकर धीरे धीरे.................को हटाने का प्रावधान है! इसलिए नेताओ की चमचागीरि बन्द करके अब भी आपलोग सुधार लाये, मुख्यमंत्री जी ने भरोसा दिया है कि मार्च के बजट सत्र में शिक्षामित्रों के लिये नये पैकज के लिये प्रयास करेगे! और 2022 से पहले प्रयास करेंगे कि केन्द्र व राज्य सरकार मिलकर जो शिक्षामित्र रह गये उनके भविष्य के लिए कुछ व्यवस्था की जा सके! और हमे पूरा भरोसा है! अपने आप पर और अब तक हुई शासन स्तर पर बिभागीय अधिकारियों व माननीयों से वार्ता से की हमारे अनुरोध को जरूर स्वीकार किया जायेगा! लेकिन उसके लिये भौडापंती बन्द हो और मुख्यमंत्री जी को बिश्वास मे लिया जाये, यह काम अकेला कोई नही कर सकता, सभी आम शिक्षा मित्रों को आगे आना होगा! धन्यवाद!!
*नोट:- इस पोस्ट को सभी ग्रुप मे शेयर करे! और एक बार पढकर मनन जरूर करे! यह कडूवा सच है लेकिन सरकार विरोधी मानसिकता फैलाने बालों को हजम नही होगा इसलिए वह इस पोस्ट से दूर रहे!*
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आपका:-
ह्रदयेश दुबे🙏
शिक्षामित्र कन्नौज
Mo. 8604104556
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