आखिर रिक्त परिषदीय विद्यालयों को किसके लिए छोड़ा? अधिकारी किसी पुरानी दुश्मनी की तरह कर रहे बरताव , वर्ष २०१९ से शुरु प्रक्रिया अभी-भी पूर्ण नहीं
परिषदीय शिक्षकों की परेशानियाँ कम होने का नाम नहीं ले रही है। नए-नए नियमों से परेशान शिक्षकों ने सत्ताधारियों से फरियाद की है आखिर कौन है जो परेशान करने वाले ही नियम बनाता है। क्या सुकून से जीने का अधिकार उनको नहीं है, अधिकारी क्या बगैर किसी जानकारी के शासनादेश जारी कर देते है। जमीनी स्तर पर उसकी पड़ताल क्यो नहीं की जाती है ? उल्लेखनीय है कि परिषदीय शिक्षकों के अन्जरनपदीय स्थानांतरण की प्रक्रिया वर्ष २०१९ से प्रारंभ की गयी थी जो अभी तक पूर्ण नहीं हो पाई है।
अधिकारियों के आपसी शक्ति प्रदर्शन ने शिक्षकों को सबसे ज्यादा कनिष्ठ कर दिया है। अभी भी परेशानियाँ कम होने का नाम नहीं ले रही है। न्यायालय से छुटकारा मिलने के बाद मुख्यमंत्री के आदेश का भी असर विभागीय अधिकारियों पर नहीं पड़ा। मन-माफिक तरीके से तिथियाँ घोषित करना, अपने तरीके से नियम बनाना आम बात हो गई है। २०१९ से शुरु प्रक्रिया २०२१ में आकर अंतिम दौर में है। सामान्य अनंत जनपदीय स्थानांतरण की प्रक्रिया महीनों में पूरी की गयी। जबकि साथ साथ आवेदन लिए गए थे। यह भी कहा गया था कि पारस्परिक और अनंत जनपदीय स्थानांतरण एक साथ होंगे। समय बीत रहा है लगभग एक माह पूर्व सामान्य स्थानांतरण कर दिए गए। पारस्परिक की सूची जारी हुई। बीएसए कार्यालय में स्थानांतरण पाये शिक्षक-शिक्षिकाओं ने कार्यभार ग्रहण कर लिया है। अब मामला विद्यालय में ज्वानिंग को लेकर है। पहले कहा गया था कि विद्यालय से विद्यालय स्थानांतरण होंगे। लेकिन अपर मुख्य सचिव ने ४ मार्च को जारी आदेश में कहा कि शून्य शिक्षक, एकल, दो शिक्षक वाले विद्यालयों को एनआईसी के माध्यम से खोलकर शिक्षकों को विद्यालय दिए जाये । यह भी निर्देश दिए गए कि जितने शिक्षक है उतने ही विद्यालय खोले जाये । यह आदेश आते ही एक बार फिर से शिक्षक-शिक्षिकाओं में निराशा दौड़ गई। वे बोले की आसमान से गिरे खजूर में अटक गए। आखिर जिन विद्यालयों से शिक्षक-शिक्षिकायें पारस्परिक स्थानांतरण लेकर दूसरे जनपदों में गए है। उनके द्वारा रिक्त किए गए विद्यालयों को किन के लिए बचा के रखा गया है। आखिर क्या खेल चल रहा है। यह विभाग सीधे सीधे क्यो नही कुछ करता है। घुमा-घुमा कर परेशान करने की आदत बन गई है। सीधी- सी बात है कि पारस्परिक स्थानांतरण में उतनी ही रिक्तियाँ है जितने शिक्षक दूसरे जनपद में आये है। एक जैसा पद, एक जैसा वेतन, एक जैसी वरिष्ठता फिर गोल-गोल क्यो घुमाया जा रहा है। इस आपा-धापी और नियमों के ढेर में दबे शिक्षक शिक्षिकायें सत्ताधारियों की ड्यूडी पर सिर झुकाने को मजबूर हो गए है। कह रहे है कि लगता हैं कि शिक्षा विभाग के आलाधिकारियों ने उनसे को पुरानी दुश्मनी का बदला लेना शुरु किया है। २०१९ से शुरु हुए स्थानांतरण अभी तक पूरे नहीं हो पाये है। जाने कितने शिक्षकों से जूनियर कर दिया गया है। अभी-भी परेशानी कम होने का नाम नही ले रही है।
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