पंचायत चुनाव में गाइड लाइन तोड़ने वालों पर हाईकोर्ट ने दिया कार्रवाई का आदेश
पंचायत चुनाव में गाइड लाइन तोड़ने वालों पर हाईकोर्ट ने दिया कार्रवाई का आदेश
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कोरोना संक्रमण को लेकर पैदा हुई विस्फोटक स्थिति के लिए प्रदेश सरकार पर तीखी टिप्पणी की है। साथ ही जिस तरीके से पंचायत चुनाव कराए जा रहे हैं, उसे लेकर भी नाराजगी जताई है। कोर्ट ने कहा कि सरकार को कोरोना की दूसरी लहर के परिणाम का अंदाजा था इसके बावजूद कोई योजना नहीं बनाई गई। कोर्ट ने कहा कि जिस तरीके से पंचायत चुनाव कराए जा रहे हैं और अध्यापकों व सरकारी कर्मचारियों को चुनाव ड्यूटी के लिए मजबूर किया जा रहा है। लोक स्वास्थ्य की अनदेखी कर पुलिस को पोलिंग बूथ पर भेज दिया गया, हम इससे नाखुश हैं।
कोरोना संक्रमण की स्थिति की मॉनिटरिंग कर रही न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और न्यायमूर्ति अजीत कुमार की पीठ ने कहा कि चुनाव कराने वाले अधिकारियों को भी पता है कि लोगों को एक दूसरे से दूर रखने का कोई तरीका नहीं है। चुनाव के फोटोग्राफ देखने से स्पष्ट है कि कहीं भी सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं किया गया। कई चुनाव रैलियों में लोगों ने मास्क भी नहीं पहने। ऐसे आयोजकों के खिलाफ महामारी अधिनियम में कार्रवाई की जाए और इस अदालत को इससे अवगत कराया जाए।
जिसे ऑक्सीजन की जरूरत उसके लिए ब्रेड बटर का क्या काम
कोर्ट ने कहा कि सरकार के लिए सिर्फ अर्थव्यवस्था मायने रखती है। मगर जिसे ऑक्सीजन की जरूरत है, उसके लिए ब्रेड और बटर का कोई उपयोग नहीं है। आप के पास खाने पीने की चीजों से भरी किराना की दुकानें हों या बाइक और कार से भरे शो रूम, अगर दवा की दुकानें खाली हैं और रेमडेसिविर जैसी जीवन रक्षक दवाएं नहीं मिल रही हैं तो इन चीजों का कोई उपयोग नहीं है।
हर दिन पांच सौ से एक हजार लोगों को अस्पताल की जरूरत
कोर्ट ने प्रदेश में मौजूदा स्वास्थ्य सुविधाओं को नाकाफी बताते हुए कहा कि प्रयागराज और लखनऊ जैसे शहरों में ही हर दिन पांच सौ से एक हजार मरीजों को अस्पताल ले जाने की जरूरत पड़ रही है। अस्पतालों के सभी बेड भरे हैं। मौजूदा स्वास्थ्य सुविधाएं इन जिलों की 0.5 प्रतिशत आबादी की जरूरत पूरी करने भर की हैं। यदि दस प्रतिशत आबादी भी भी संक्रमण की चपेट में आ गई तो हालात का अंदाजा लगाया जा सकता है।
हम हालात को मूकदर्शक बनकर नहीं देख सकते
कोर्ट ने कहा कि मौजूदा हालात यह हैं कि सरकारी सुविधाएं सिर्फ वीवीआईपी और वीआईपी लोगों को ही मिल रही हैं। वीआईपी को छह से 12 घंटे में आरटीपीसीआर की रिपोर्ट मिल जाती है, जबकि आम आदमी को 72 घंटे में भी मिलना मुश्किल है। सरकारी अस्पतालों में दाखिले और रेमडेसिविर जैसी जीवन रक्षक दवाओं के लिए वीआईपी की सिफारिश लोगों को लगानी पड़ रही है। कोर्ट ने कहा कि केजेएमयू (लखनऊ) और एसआरएन अस्पताल (प्रयागराज) के कई डाक्टर यहां तक की प्रदेश के मुख्यमंत्री तक आइसोलेशन में चले गए हैं। ऐसे में हम हालात को मूक दर्शक बन कर नहीं देख सकते हैं।
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