नाक-गले में नहीं, फेफड़े के अंदर छिपा मिल रहा कोरोना
नाक-गले में नहीं, फेफड़े के अंदर छिपा मिल रहा कोरोना
मेरठ : कोरोना का वायरस छलिये का किरदार अख्तियार कर चुका है। वायरस आरटी-पीसीआर जांच को चकमा दे रहा है। ऐसे में नई प्रकार की जांचों से वायरस को पकड़ा जा रहा है। कई मरीजों की आरटी-पीसीआर जांच निगेटिव मिली, लेकिन ब्रांकोस्कोपी कर फेफड़े की जांच की गई तो वहां कोरोना वायरस छुपा था। पहले पांच से सात दिनों में वायरस निमोनिया बना रहा था, वहीं अब एक से तीन दिन में फेफड़ों में धब्बा बन जाता है। वायरस को पकड़ने के लिए मरीजों में इन्फ्लामेट्री मार्करों की जांच की जा रही है।
कोरोना का चक्र 14 दिनों का माना जाता है। चिकित्सकों के मुताबिक कोरोना में म्यूटेशन की वजह से आरटी-पीसीआर जांच कई बार वायरस को पकड़ नहीं पाती है। मरीजों में छाती में दर्द, बुखार, सांस फूलने, खांसी समेत सभी लक्षण उभरते हैं, किंतु जांच रिपोर्ट निगेटिव आ रही है, लेकिन जब इन्हीं मरीजों की छाती का एक्स-रे व सीटी स्कैन जांच कराई जा रही है तो फेफड़ों में रुई के फाहे जैसे धब्बे मिल रहे हैं। सांस फूलने वाले मरीजों की रिपोर्ट निगेटिव आने पर डाक्टरों ने ब्रांकोस्कोपी की मदद लेनी शुरू कर दी है।
कहते हैं विशेषज्ञ
पहले पांच से सात दिन में तो अब वायरस दो दिन में ही निमोनिया बना देता है। कई बार बुखार पांच दिनों तक टिक रहा है। ब्रांकोस्कोपी से लंग्स के अंदर का पानी जांचें तो कोरोना मिल सकता है। डायरिया, चकत्ते व शरीर में चिकनगुनिया जैसा दर्द नए लक्षण हैं।
-डा. अमित अग्रवाल, सांस एवं छाती रोग विशेषज्ञ
आरटी-पीसीआर रिपोर्ट निगेटिव आए तो छाती की सीटी जांच जरूरी है। म्यूटेशन की वजह से वायरस चकमा देने में सफल हो रहा है। कई मरीजों के गले व नाक के स्वैब में संक्रमण नहीं मिला पर फेफड़ों के अंदर वायरस की कालोनी बन गई। इन्फ्लामेंट्री मार्करों की जांच भी महत्वपूर्ण है।
-डा. वीएन त्यागी, सांस व छाती रोग विशेषज्ञ
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