पंचायत चुनाव 2021 ने दिया जिंदगी भर का जख्म, संकट में अब शिक्षकों के परिवार
पंचायत चुनाव 2021 ने दिया जिंदगी भर का जख्म, संकट में अब शिक्षकों के परिवार
झांसी। पति का साथ छूट गया, बच्चों के सिर से पिता का साया उठ गया और असंवेदनशील आयोग ने उनकी मौत को शून्य कर दिया। पंचायत चुनाव में ड्यूटी के दौरान संक्रमित होकर जिले में करीब 20 शिक्षकों ने अपनी जान गवां दीं। शिक्षकों के परिवारों पर संकट आ गया। नौकरी और मुआवजा मिलेगा, तब मिलेगा, लेकिन जिम्मेदारों के बयान और उनकी असंवेदनशीलता पीड़ित परिवारों को चुभ रही है। जिले में संक्रमण से मरने वाले शिक्षकों में कई तो ऐसे हैं, जिनके बच्चों को यह तक नहीं पता कि उनके पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं। चुनावी ड्यूटी लगने के बाद तमाम शिक्षकों ने बीमार होने का हवाला देकर खुद को ड्यूटी से मुक्त करने का भी निवेदन अफसरों से किया, लेकिन किसी ने सुना नहीं। प्रदेश भर में हजारों शिक्षकों के चुनाव ड्यूटी में जान गंवाने के बाद भी आयोग ने महज तीन शिक्षकों की मौत का दावा किया। इसे लेकर शिक्षकों के परिजनों और शिक्षक संगठनों में खासी नाराजगी है।
गुरसराय ब्लॉक के पांडवहा में सहायक अध्यापक आनंद पटेल की चुनाव में बबीना ब्लॉक में उनकी ड्यूटी लगी थी। ड्यूटी से लौटने के बाद बुखार आया और जांच कराई तो 17 अप्रैल को पॉजिटिव रिपोर्ट आई। बीमारी से जंग लड़ते-लड़ते 22 अप्रैल को मौत हो गई। पत्नी सुनीता पटेल कहती हैं कि चुनाव में ड्यूटी करने के बाद उनकी तबियत खराब हुई। संक्रमण इतना बढ़ गया कि जिंदगी से हार गए। वे कहती हैं कि नौकरी, मुआवजा और अन्य सुविधाएं तो ठीक हैं, लेकिन आयोग की असंवेदनशीलता पर शर्म आती है। शिक्षक और उनके परिवारों ने बहुत कुछ खो दिया है।
हम पूरी तरह से टूट गए हैं
गुरसराय ब्लॉक के पूर्व माध्यमिक विद्यालय महेवा में तैनात शिक्षक सुजीत श्रीवास्तव की आठ मई को मौत हो गई। चुनाव ड्यूटी से लौटने के बाद तबियत बिगड़ गई। कोरोना रिपोर्ट तो निगेटिव आई, लेकिन सीटी स्कैन में संक्रमण आया। सुजीत के भाई संदीप बताते हैं कि सुजीत की पत्नी नम्रता पूरी तरह से टूट चुकी हैं। 14 साल का बेटा श्रेयांस श्रीवास्तव तो सब कुछ समझता है, लेकिन सात साल की बेटी आराध्या बार-बार पापा के बारे में पूछती है। नम्रता श्रीवास्तव कहती हैं कि हम पूरी तरह से टूट गए हैं। सरकार और आयोग हमारे दर्द को महसूस नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि इस तरह के आंकड़े नहीं पेश किए जाएं।
थोड़ी तो मानवता रखी जाए
तालपुरा स्थित सरकारी स्कूल में तैनात शिक्षक इंद्रमोहन की 21 अप्रैल को कोरोना संक्रमण से मौत हो गई। प्रशिक्षण लेने के बाद से ही खांसी-जुकाम था। परिवार में पत्नी नीलम सिंह, चार साल का बेटा अखिल, छह साल की बेटी अनुप्रज्ञा और वृद्ध माता-पिता हैं। पत्नी नीलम सिंह कहती हैं कि सरकार हमसे पूछे कि हमने क्या खोया है? चुनाव में हमारा तो सब कुछ बर्बाद हो गया। सरकार और आयोग थोड़ी तो मानवता दिखाए। सभी शिक्षकों को दिवंगत शिक्षकों के परिजनों को इंसाफ दिलाना चाहिए।
परिवार कैसे चलाऊ ंगी
बंगरा ब्लॉक के कन्या रानीपुर विद्यालय में तैनात शिक्षक वीरेंद्र सिंह तोमर की 24 अप्रैल को मौत हो गई। 14 अप्रैल को चुनावी ड्यूटी की सामग्री लेते हुए उनकी तबियत बिगड़ी और उनको मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया। इसके बाद भी आयोग उनकी मौत को चुनाव के दौरान होना नहीं माना। पत्नी केशकली कहती हैं कि हमने अपना सब कुछ खो दिया। तीन बच्चे हैं और अभी पढ़ रहे हैं। मुआवजा और नौकरी के लिए सरकार जल्द व्यवस्था करे।
प्रशासन ने 20 शिक्षकों की मौत स्वीकारी
कोर्ट के निर्देश के बाद जिला प्रशासन ने चुनावी ड्यूटी के दौरान मरने वाले कर्मचारियों का डाटा तैयार किया था। जिसमें 18 शिक्षक और दो शिक्षामित्रों के नाम शामिल किए गए। इसके बाद भी आयोग की ओर से तीन शिक्षकों की मौत के दावे को लेकर शिक्षक संगठनों में रोष है। बेसिक शिक्षक वेलफेयर एसोसिएशन के जिलाध्यक्ष रसकेंद्र गौतम कहते हैं कि हमने 20 शिक्षकों की सूची प्रशासन को दी थी। मगर आयोग ने तीन शिक्षकों की ही मौत का दावा किया। यह अन्याय है। सरकार ने संशोधन करने के लिए कहा है, अगर न्याय नहीं मिला तो शिक्षक चुप नहीं बैठेंगे।
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