यूपी: मंत्री सतीश द्विवेदी की बढ़ीं मुश्किलें, राजभवन ने पूछा- ईडब्ल्यूएस कोटे में कैसे हुई नियुक्ति
यूपी: मंत्री सतीश द्विवेदी की बढ़ीं मुश्किलें, राजभवन ने पूछा- ईडब्ल्यूएस कोटे में कैसे हुई नियुक्ति
उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा मंत्री डॉ. सतीश द्विवेदी के भाई की सिद्धार्थ विश्वविद्यालय में ईडब्ल्यूएस (आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य अभ्यर्थी) कोटे में असिस्टेंट प्रोफसर के पद हुई नियुक्ति का मामला तूल पकड़ता दिख रहा है। मंत्री के भाई के पद से इस्तीफा दिए जाने के बाद भी मामला शांत होता नहीं दिख रहा है। जहां विपक्षी दल इस मुद्दे को गरमाने में लगे हुए हैं। वहीं मामला सुर्खियों में आने के बाद राजभवन ने विश्वविद्यालय से जवाब-तलब किया है।
अरुण द्विवेदी के मनोविज्ञान विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर 21 मई को ज्वाइन करने के बाद से ही विवाद शुरू हो गया है। राजभवन से जवाब तलब किए जाने के बाद सोमवार को विश्वविद्यालय में भी खासी हलचल रही। विश्वविद्यालय प्रशासन से जुड़े अफसर जवाब तैयार करने में जुटे रहे। इस पर कुलपति प्रो. सुरेंद्र दुबे ने कहा कि राजभवन से मंत्री के भाई की नियुक्ति के मामले में जो भी जानकारी मांगी गई थी, उसे भेज दिया गया है।
पत्नी का वेतन 70 हजार रुपये प्रतिमाह
यूपी के बेसिक शिक्षा मंत्री डॉ सतीश द्विवेदी के भाई अरुण द्विवेदी की पत्नी डॉ.विदुषी दीक्षित मोतिहारी जनपद के एमएस कॉलेज में मनोविज्ञान की असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। लॉकडाउन में कॉलेज बंद हैं। मगर सोमवार को मोतिहारी के शैक्षणिक से लेकर राजनीतिक हलकों में इस बात की जबरदस्त चर्चा रही। एमएस कॉलेज के प्राचार्य डॉ. अरुण कुमार ने बताया कि डॉ विदुषी की बहाली बीपीएससी के माध्यम से 2017 में हुई थी। वे यहां मनोविज्ञान विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं। कॉलेज के वित्त प्रभाग के सूत्रों के अुनसार सातवें वेतनमान के बाद उनका वेतन अन्य भत्ता के साथ 70 हजार से अधिक है। इस संबंध में डा.विदुषी से संपर्क करने का प्रयास किया गया तो उनका फोन लगातार बंद मिला।
2019 का प्रमाणपत्र, दो साल बाद नौकरी
अरुण द्विवेदी का ईडब्ल्यूएस प्रमाणपत्र 2019 में जारी हुआ था। इस पर उन्हें 2021 में सिद्धार्थ विश्वविद्यालय में नौकरी मिली। इस संबंध में डीएम दीपक मीणा ने बताया कि 2019-20 के लिए ईडब्ल्यूएस प्रमाणपत्र जारी किया गया था, जो मार्च 2020 तक मान्य था। इधर, प्रमाणपत्र बनने की प्रक्रिया से जुड़े कर्मचारियों और अफसरों के बयान में भी विरोधाभास सामने आया है। गांव के लेखपाल छोटई प्रसाद ने हिन्दुस्तान से कहा कि उन्होंने प्रमाणपत्र पर कोई रिपोर्ट नहीं लगाई है और उन्हें इस बारे में जानकारी भी नहीं है। जबकि एसडीएम उत्कर्ष श्रीवास्तव का कहना है कि नवंबर 2019 में प्रमाणपत्र जारी हुआ है। इसमें आठ लाख से कम आय की रिपोर्ट लगने के बाद जारी हुआ है। रिपोर्ट पर लेखपाल छोटई प्रसाद के हस्ताक्षर हैं। अब वह कुछ भी कहें पर हस्ताक्षर उन्हीं के हैं।
प्रमाणपत्रों की कराएंगे जांच: कुलपति
कुलपति प्रो.सुरेंद्र दुबे ने कहा कि वह अरुण के प्रमाणपत्र की जांच एक महीने के अंदर कराएंगे। उन्होंने बताया कि नियुक्ति के बाद छह माह के अंदर प्रमाणपत्रों की जांच करानी होती है पर इस मामले में वह महीने भर के अंदर जांच करा लेंगे। जांच में अगर रिपोर्ट निगेटिव रहती है तो नियुक्ति निरस्त हो जाएगी और यदि रिपोर्ट सही मिलती है तो वह सेवा में बने रहेंगे।
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