भर्ती परीक्षाएं आनलाइन कराने का वक्त:- पेपर लीक होने का मामला सिर्फ नौकरी मिलने, न मिलने तक सीमित नहीं, इससे युवा पीढ़ी का टूटता है मनोबल
भर्ती परीक्षाएं आनलाइन कराने का वक्त:- पेपर लीक होने का मामला सिर्फ नौकरी मिलने, न मिलने तक सीमित नहीं, इससे युवा पीढ़ी का टूटता है मनोबल
पिछले दिनों प्रश्नपत्र लीक होने के कारण यूपीटेट यानी उत्तर प्रदेश शिक्षक पात्रता परीक्षा रद करनी पड़ी। इसमें 21 लाख परीक्षार्थी बैठे थे। उत्तर भारत विशेषकर उत्तर प्रदेश और बिहार में भयानक बेरोजगारी है। ऐसे में लाखों युवक-युवती आस लगाए रहते हैं कि उन्हें शिक्षक की सरकारी नौकरी मिल जाए। इसके लिए वे कड़ी मेहनत करते हैं, लेकिन बेईमान तंत्र उनके सामने जब तब बाधक बन खड़ा हो जाता है। शिक्षकों की भर्ती के ऐसे ही एक मामले में हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला सहित कुछ प्रशासनिक अधिकारियों को सजा हुई, लेकिन अभी भी बहुत से घोटालेबाज कानून की गिरफ्त से बाहर हैं।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने घोषणा की है कि पेपर लीक करने वालों के घर पर भी बुलडोजर चलाया जाएगा। ऐसी सख्ती जरूरी है। बुलडोजर चलना इसलिए भी जरूरी है कि देश के किसी भी हिस्से में ऐसा अपराध करने की कोई हिम्मत न करे। तीन वर्ष पहले दिल्ली के कर्मचारी चयन आयोग में भी ऐसे ही पेपर लीक का मामला हुआ था। पेपर तो रद कर दिया गया था, लेकिन मुकदमेबाजी और दूसरे कारणों से दो-तीन साल तक नौजवान सड़कों पर भटकते रहे और तत्कालीन चेयरमैन को दो साल का नौकरी में एक्सटेंशन और मिल गया। भारतीय लोकतंत्र को कुछ राजनीतिक विश्लेषक साफ्ट लोकतंत्र इसीलिए कहते हैं कि यहां कानून तोड़ने वालों को कोर्ट-कचहरी, नौकरशाही और राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण मुश्किल से ही सजा मिल पाती है। यहां तक कि कई हत्यारे भी कानून की पेचीदगियों के चलते सजा से बच जाते हैं या उन्हें कम सजा मिलती है। देखा जाए तो समाज में अपराध करना रोजमर्रा की जिंदगी में शामिल हो चुका है।
यहां भ्रष्टाचार रग-रग में प्रवेश कर चुका है। यह पेपर लीक होने का मामला भी उसी का विस्तार है।इसे बदलने की जरूरत है। 21वीं सदी में नई तकनीक इसमें रामबाण साबित हो रही है। भारतीय रेल दशकों तक ऐसे ही परीक्षाओं में अनियमितताएं, भ्रष्टाचार, परिणाम में लेटलतीफी के लिए बदनाम थी। 2012 में रेलवे भर्ती बोर्ड की एक परीक्षा में पेपर लीक होने के बाद जो कदम उठाए गए, उसके बाद ऐसा कभी नहीं हुआ। यह प्रशासन की सूझबूझ और डिजिटल इंडिया के सहयोग से ही संभव हुआ है।
कड़ी निगरानी के बीच एक ही एजेंसी को पूरी जांच-परख के बाद भर्ती का काम सौंपा जाता है, जिससे एक-दूसरे पर आरोप न लग सके। रेलवे भर्ती बोर्ड की परीक्षाओं में भी बैठने वाले कई बार 30-40 लाख तक होते हैं। रेलवे ने क्षेत्रीय भाषाओं में भी परीक्षा देने की छूट दी हुई है। इन सभी परीक्षाओं को अब कंप्यूटर पर आनलाइन ही करने का वक्त आ गया है। नए भारत की उम्मीद डिजिटल क्रांति द्वारा संभव है। सरकारी नौकरी के लिए होने वाली भर्ती या नामी संस्थाओं में प्रवेश के लिए होने वाली परीक्षाओं में भ्रष्टाचार रूप बीमारी को दूर करने का यही रास्ता है। इसके अलावा प्रिंटिंग प्रेस के रिकार्ड जब तक पक्के न हों, परीक्षा केंद्र के मुखिया और दूसरी व्यवस्थाएं इतनी मजबूत, विश्वसनीय, पारदर्शी तथा आधुनिकतम नहीं हों, तब तक उनको यह जिम्मेदारी नहीं दी जानी चाहिए। कई बार टेंडर के नियम को भी बदलने की जरूरत होती है।
यूपीटेट से लेकर कई राज्यों की पुलिस और सेना आदि भर्ती परीक्षा में इन्हीं कमियों की वजह से बार-बार भ्रष्टाचार के मामले सामने आ रहे हैं। यह मामला सिर्फ नौकरी मिलने, न मिलने तक सीमित नहीं है। पेपर लीक होने से एक पूरी युवा पीढ़ी का मनोबल टूटता है। नौजवान पीढ़ी का मनोबल टूटने से न कोई शासन सुरक्षित रह सकता है और न कोई देश। अफसोस की बात यह है कि पिछले कई वर्षो से पेपर लीक होने के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। हर बार प्रशासन यह तो कहता है कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा, लेकिन उसके बाद पता नहीं लगता कि उन दोषियों को क्या सजा मिली? दो-चार दिन कुछ होता है और फिर अगले पेपर के लीक होने का इंतजार प्रशासन को रहता है।
क्या आपने लगभग दस वर्ष पहले एमबीबीएस परीक्षा में शामिल नालंदा के नकली डाक्टर की सजा के बारे में सुना? दुर्भाग्य से आजादी के बाद से ही हम परीक्षा में नकल और चोरी के इतने आदी हो चुके हैं कि समाज इसके खिलाफ उठ कर खड़ा नहीं हो पाता। जिस दिन अखबार में पेपर लीक होने की खबर छपी, उसी दिन अमेरिका में एक भारतीय नौजवान पराग अग्रवाल को ट्विटर का सीईओ बनाया गया। आज दुनिया भर में भारतीय नौजवान बड़ी-बड़ी कंपनियों की बागडोर संभाल रहे हैं।
क्या आपने लगभग दस वर्ष पहले एमबीबीएस परीक्षा में शामिल नालंदा के नकली डाक्टर की सजा के बारे में सुना? दुर्भाग्य से आजादी के बाद से ही हम परीक्षा में नकल और चोरी के इतने आदी हो चुके हैं कि समाज इसके खिलाफ उठ कर खड़ा नहीं हो पाता। जिस दिन अखबार में पेपर लीक होने की खबर छपी, उसी दिन अमेरिका में एक भारतीय नौजवान पराग अग्रवाल को ट्विटर का सीईओ बनाया गया। आज दुनिया भर में भारतीय नौजवान बड़ी-बड़ी कंपनियों की बागडोर संभाल रहे हैं।
सुंदर पिचाई, निकेश अरोड़ा, शांतनु नारायण, रंगराजन रघुराम, अरविंद कृष्ण वे नाम हैं, जो भारत की इन्हीं स्थितियों से निकल कर उन कंपनियों पर राज कर रहे हैं, जिन कंपनियों का राज पूरी दुनिया पर चलता है। इनकी सफलता पर इंग्लैंड और अमेरिका के दिग्गजों ने टिप्पणी की है कि भारत की प्रतिभाओं की वजह से आज अमेरिका इन बुलंदियों पर पहुंचा है। आखिर हम ऐसी प्रतिभाओं की सहायता से एक पारदर्शी परीक्षा प्रणाली, सशक्त न्याय व्यवस्था, भ्रष्टाचार मुक्त स्थितियां पैदा करने में सक्षम क्यों नहीं हैं? तकनीक क्षेत्र में हमारी जो विशेषज्ञता है और जिसका दुनिया लोहा मानती है, उसका लाभ भर्ती परीक्षाओं को सही तरह से कराने में क्यों नहीं दिख रहा है? उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का कर्तव्य है कि इस बार दोषियों को दी जाने वाली सजा पूरे देश के लिए मिसाल बने।
(लेखक पूर्व प्रशासक एवं शिक्षाविद् हैं)
प्रेमपाल शर्मा
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