परिषदीय स्कूलों की सूरत बदलने के नाम पर डकार गए लाखों
परिषदीय स्कूलों की व्यवस्था सुधारने के लिए शासन सख्त है। इसके लिए जिले के करीब 2061 परिषदीय स्कूलों को कंपोजिट ग्रांट भेजी गई है। लेकिन नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के कई विद्यालयों में कंपोजिट ग्रांट की धनराशि में बड़े पैमाने पर बंदरबांट की गई है। यहां तक की स्कूलों की रंगाई-पुताई तक नहीं हुई है। खेल सामग्री तक नहीं है जबकि कागज पर खेल सामग्री क्रय दिखा दिया गया है।
जिले में संचालित 1407 प्राथमिक और 654 उच्च प्राथमिक स्कूलों को कंपोजिट स्कूल ग्रांट दी जा रही है। हर साल कक्षा एक से आठ तक के विद्यालयों को लगभग आठ करोड़ रुपये भेजा जाता है। इस धनराशि को स्कूलों की रंगाई पोताई, वॉल पेंटिंग, स्लोगन सूचना आदि पर खर्च करना होता है लेकिन नक्सल-दुरूह क्षेत्रों के कई स्कूलों में कंपोजिट ग्रांट की धनराशि का बंदरबांट किया गया है। स्कूलों में अध्ययनरत बच्चों के लिए खेल सामग्री की व्यवस्था तो दूर रंगाई पुताई तक नहीं कराई गई है। कंपोजिट ग्रांट की धनराशि का इस्तेमाल कितना हो रहा है इसका अंदाजा प्राथमिक विद्यालय भैरपुर, झरना स्कूल को ही देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है। अभिभावक कमलेश और सोमारू का कहना है कि स्कूलों में बच्चों को हाथों को धुलने के लिए साबुन तक का इंतजाम नहीं है। रामनिहोर और मोलई स्कूल में बच्चों को खेलकूद के लिए खेल सामग्री ही नहीं मिलती है।
परिषदीय स्कूलों की व्यवस्था सुधारने के लिए कंपोजिट ग्रांट के तहत धन स्कूलों को भेजा जाता है। दो साल से स्कूलों के रंगाई पोताई का कार्य रोक दिया गया था। प्रधानाचार्यों को कंपोजिट ग्रांट की धनराशि नियमानुसार खर्च करने का निर्देश दिया गया है। - हरिवंश कुमार, बेसिक शिक्षाधिकारी।
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