यूपी विधान परिषद में भी भाजपा का बहुमत, 100 सीटों वाले उच्च सदन में अब 66 सदस्य
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के बाद अब विधान परिषद में स्थानीय प्राधिकारी निर्वाचन क्षेत्र के चुनाव में बंपर जीत के साथ ही 100 सीटों वाले उच्च सदन में भाजपा पांच साल बाद बहुमत हासिल करने में सफल हो गई है। अब तक यहां सपा का वर्चस्व था।
स्थानीय प्राधिकारी निर्वाचन क्षेत्र की 36 में से 33 सीटों में मिली सफलता के बाद भाजपा के अब विधान परिषद में 66 सदस्य हो गए हैं। सपा के पास सिर्फ 17 एमएलसी बचे हैं। इससे उच्च सदन में भी बिल पास कराने में अब भाजपा की राह आसान हो जाएगी।
विधान परिषद में बसपा के चार सदस्य हैं जबकि कांग्रेस के एक सदस्य हैं। अपना दल, निषाद पार्टी, जनसत्ता दल लोकतांत्रिक की एक-एक सीटें हैं। निर्दलीय तीन, शिक्षक दल दो व एक सीट निर्दलीय समूह के पास है। वर्तमान में तीन सीटें रिक्त हैं। इनमें योगी आदित्यनाथ और ठाकुर जयवीर सिंह ने एमएलए बनने के कारण एमएलसी पद से इस्तीफा दिया है। वहीं, नेता प्रतिपक्ष रहे सपा के अहमद हसन के निधन के कारण उनकी सीट भी रिक्त चल रही है।
सीएम योगी आदित्यनाथ ने सस्पेंड बलिया के डीआइओएस बृजेश मिश्र की संपत्तियों की जांच का आदेश दिया है।
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36 एमएलसी सीटों में भाजपा ने 33 सीटों पर जीत दर्ज की है। निर्दलीय के खाते में दो सीटें आई हैं। एक सीट पर पूर्व मंत्री और विधायक रघुराज प्रताप सिंह की नवगठित पार्टी जनसत्ता दल लोकतांत्रिक को जीत मिली। सपा को इस चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा है। वह अपना खाता भी नहीं खोल सकी।
विधान परिषद में स्थानीय प्राधिकारी निर्वाचन क्षेत्र की 36 एमएलसी सीटों में सपा का पत्ता साफ होने के साथ ही उससे अब छह जुलाई के बाद उच्च सदन में नेता प्रतिपक्ष का पद भी छिन जाएगा। नेता प्रतिपक्ष का पद विपक्ष के सबसे बड़े दल को मिलता है, लेकिन इसके लिए दल की न्यूनतम 10 प्रतिशत सीटें जरूरी हैं। वर्तमान में सपा के 17 एमएलसी हैं, इनमें से 12 सदस्यों का कार्यक्रम छह जुलाई तक अलग-अलग चरणों में समाप्त हो जाएगा। सौ सीटों वाले विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष के लिए न्यूनतम 10 सीटें होनी चाहिए।
भाजपा ने विधानसभा चुनाव में लगातार सत्ता वापसी का रिकार्ड 37 वर्ष बाद बनाया तो विधान परिषद चुनाव में भी इतिहास रच दिया। परिषद में इतनी अधिक सीटें भाजपा या कोई भी दल कभी नहीं जीता। ऐसे में पार्टी कार्यकर्ताओं का उत्साह चरम पर है। इस माहौल को अब भाजपा इसी वर्ष होने जा रहे नगर निकाय चुनाव और फिर 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए भी बनाए रखना चाहेगी।
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