नौनिहालों को अनोखे अंदाज पढ़ा रहे गुरुजी
आ अंगुली पर झूम कबूतर, लेते हैं मुंह चूम कबूतर, रखते रेशम बाल कबूतर, चलते रुनझुन चाल कबूतर, गुटर-गुटर गूं बोल कबूतर...। कक्षा दो की हिंदी की पाठ्य पुस्तक किसलय में कबूतर शीर्षक से मौजूद सोहन लाल द्विवेदी की रचना को शिक्षक अखिलेश चंद्र पांडेय अनोखे अंदाज में पढ़ाते हैं।
कंपोजिट विद्यालय मानधाता के शिक्षक अखिलेश गीतों के माध्यम से नए अंदाज में बच्चों को पढ़ा रहे हैं। कक्षा सात की हिंदी की पुस्तक दीक्षा के सूरदास के पद को ऐसे रोचक तरीके से पढ़ाते हैं कि वह सभी को याद हो गया है। बच्चे जसोदा हरि पालनैं झुलावैं। हलरावै, दुलराइ मल्हावें, जोड़-जोड़ कछु गावैं। मेरे लाल काँ आउ निंदरिया, काह न आनि सुआ । जसोदा हरि पालने झुलावें...। गाते हैं। अखिलेश बताते हैं कि सूरदास में जन्म से ही नेत्रहीन थे, फिर भी वह कृष्ण भक्ति की अंतर ज्योति से कान्हा को देख लेते हैं। इसी प्रकार संस्कृत व अंग्रेजी के पाठों को भी वह कविता के अंदाज में पढ़ा रहे हैं। पहले वह बोलते हैं, फिर बच्चे उनके बाद बोलते हैं। बालः क्रीडति नदी तटे, शशकः धावति वने वने । शिक्षक अखिलेश को उनकी प्रतिभा को लेकर राज्य स्तर पर सम्मानित किया जा चुका
है। कहानी सुनाओ प्रतियोगिता में उनकी कहानी पुरस्कृत हो चुकी है। हाल ही में मंडल स्तरीय बाल क्रीड़ा प्रतियोगिता में राष्ट्रीय एकांकी में अखिलेश की अथक मेहनत और परिश्रम के परिणामस्वरूप प्रतापगढ़ के बच्चे एक बार पुनः प्रथम स्थान अर्जित किया था.
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