विदेश से ली मेडिकल डिग्री को मान्यता कठिन होगी
जो छात्र विदेशों से मेडिकल डिग्री लेकर आ रहे हैं, उन्हें पहले संबंधित देश में मेडिकल लाइसेंस हासिल करना होगा या फिर यह साबित करना होगा कि उनकी डिग्री उस देश में चिकित्सा के लिए पूर्णतया मान्य है, जहां से उन्होंने शिक्षा हासिल की है। केंद्र सरकार विदेशों से मेडिकल की पढ़ाई को गुणवत्तापूर्ण बनाने के लिए कई कड़े कदम उठा रही है, जिसमें एक यह भी है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, कई नए कदम उठाए गए हैं, जो अब क्रियान्वित हो रहे हैं। अगले कुछ साल में डिग्री लेकर वापस लौटने वाले छात्रों को इनसे होकर गुजरना होगा। राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) इनकी जांच करेगा।
संबंधित देश की संस्था में पंजीकरण जरूरी स्वास्थ्य मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, इनमें सबसे महत्वपूर्ण है कि छात्र को साबित करना होगा कि उसकी डिग्री उस देश में चिकित्सक के रूप में कार्य करने के लिए मान्य है। इसके लिए उसे देश की नियामक संस्था के समक्ष पंजीकरण कराना होगा, जिसका दस्तावेज उसे एनएमसी के समक्ष पेश करना होगा। हालांकि, किसी अन्य तरीके से भी उसे यह साबित करने का विकल्प होगा।
दरअसल, भारत सरकार को सूचना मिली है कि कई देशों में कई ऐसी डिग्री दी जाती है, जो खुद वहां चिकित्सा के लिए मान्य नहीं होती है या सीमित चिकित्सकीय कार्य के लिए मान्य होती है।
डिग्री की अवधि 54 महीने और इंटर्नशिप जरूरी दूसरे, अब यह भी अनिवार्य कर दिया गया है कि जो विषय भारत में एमबीबीएस में पढ़ाए जा रहे हैं, वहीं विषय देश से बाहर की पढ़ाई में भी जरूरी होने चाहिए। एनएमसी ने इसके लिए विषयों की एक सूची जारी की है। साथ ही डिग्री की अवधि 54 महीने और उसके बाद उसी संस्थान में एक साल की इंटर्नशिप भी अनिवार्य कर दी है।
लापरवाही पर निर्देश
नई दिल्ली। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने चिकित्सकीय लापरवाही के मामलों के निर्धारण के लिए दिशा-निर्देश तैयार करने की स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र की लंबे समय से जारी मांग पर विचार किया है। सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी में यह बात सामने आई है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत दायर एक आवेदन के जवाब में कहा कि हालांकि, चिकित्सकीय लापरवाही के मामलों के निर्धारण के लिए फिलहाल कोई दिशा-निर्देश नहीं है, लेकिन यह मामला विचाराधीन है।
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