शिक्षणेतर कर्मियों की नौकरी खतरे में, कोर्ट को भी रखा अंधेरे में
लखनऊ। पिछले महीने एडेड कालेजों के 2090 शिक्षकों की बर्खास्तगी के बाद अब एडेड विद्यालयों के शिक्षणेत्तर कर्मचारियों (चतुर्थ श्रेणी)की नौकरी पर तलवार लटक गई है। शासन को शिकायतें मिल रही थीं कि 8 सितम्बर 2010 को चतुर्थ श्रेणी की नियुक्ति पर लगी पाबन्दी के बावजूद एडेड स्कूलों के प्रबन्धकों ने नियुक्तियां कर ली। इसमें जिले व मंडल स्तर के शिक्षा अधिकारियों की भी मिलीभगत के आरोप भी लगे हैं।
सरकार ने एक प्रोफार्मा जारी कर माध्यमिक शिक्षा निदेशक से इस संबंध में 15 दिनों के भीतर विस्तृत जानकारी तलब की है। माध्यमिक शिक्षा के विशेष सचिव कृष्ण कुमार गुप्ता की ओर से माध्यमिक शिक्षा निदेशक को भेजे पत्र में कहा गया है कि चतुर्थ श्रेणी की नियुक्तियों में गड़बड़ी की गई है। पूर्व में नियमित रूप से कार्यरत चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों के सेवानिवृत होने पर उनके स्थान पर बकायदा विज्ञापन निकाल कर चतुर्थ श्रेणी के कथित रिक्त पदों पर खूब भर्तियां की गई है। साथ ही जिला विद्यालय निरीक्षक कार्यालयों को भेज कर वहां से बड़े ही सुनियोजित तरीके से शासनादेश को आधार बनाकर निरस्त कराया गया है।
कोर्ट को भी रखा अंधेरे में
कर्मियों को नियमित करने या नियमित वेतन दिलाने में कोर्ट को अंधेरे में रखा जाता है। नियुक्ति मामले में हाईकोर्ट में दाखिल रिट याचिकाओं में स्थानीय अधिकारियों की ओर से कमजोर पैरवी की जाती है ताकि कोर्ट से वेतन प्रदान करने का आदेश मिल जाये। साथ ही डीआईओएस के निरस्तीकरण आदेश पर स्थगनादेश भी ले लिया जाता है। अवमानना के मामले में भी स्थानीय स्तर से कमजोर पैरवी कराकर अनुचित अभ्यर्थियों को लाभ पहुंचाया जाता है जबकि शासन के विरुद्ध होने वाले ऐसे निर्णयों को विशेष अनुज्ञा याचिका से प्रभावी पैरवी से निरस्त कराया जाना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं किया गया।
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