इस बेसिक स्कूल में ‘एडमिशन क्लोज्ड’ नोटिस, पहली बार 412 दाखिले
काशी विद्यापीठ ब्लॉक क्षेत्र के कंपोजिट विद्यालय महेशपुर की सीटें फुल हो गई हैं। सत्र 2024-25 के लिए अब तक 412 छात्र-छात्राओं के दाखिले हुए हैं। मानक के अनुसार, स्कूल में आठ ही सीटें बची हैं। दाखिले का दबाव ज्यादा है, इसलिए स्कूल परिसर में एडमिशन क्लोज्ड का बोर्ड लगवा दिया गया है।
कंपोजिट विद्यालय महेशपुर में पिछले दो-तीन वर्षों से छात्र-छात्राओं की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है। इसके पीछे पढ़ाई का स्तर, अनुशासन, शिक्षकों की समय पर उपस्थिति और अभिभावकों के साथ शिक्षकों के संवाद को प्रमुख वजह माना जा रहा है।
पिछले वर्ष विद्यालय में बच्चों की संख्या 390 के आसपास थी। विद्यालय के सभी शिक्षकों और विद्यार्थियों को सुबह की प्रार्थना में जरूर शामिल होने का निर्देश है, जिसका सख्ती से पालन कराया जाता है।
अध्यापक समय पर कक्षाएं लेते हैं और प्रधानाध्यापक के स्तर पर इसकी मॉनीटरिंग की जाती है। बच्चों की क्लास और होमवर्क के संबंध में अभिभावकों से समय-समय पर संवाद किया जाता है।
क्लासरूम का आकार है छोटा
कंपोजिट विद्यालय महेशपुर की प्रधानाध्यापक शैल कुमारी ने बताया कि परिषदीय विद्यालय में कक्षा एक से आठ तक पढ़ाई होती है। एक शिक्षक पर 35 विद्यार्थियों को दाखिला देने का मानक है। इस हिसाब से 12 शिक्षकों वाले विद्यालय में 420 विद्यार्थियों का दाखिला होना चाहिए, लेकिन क्लासरूम का आकार छोटा है।
इस कारण बच्चों के बैठने के लिए जगह नहीं है। प्रधानाध्यापक के मुताबिक, 35 विद्यार्थियों की क्षमता वाले कमरे में 50 से 60 विद्यार्थी बैठाए जा रहे हैं। विद्यालय में आठ कमरे हैं। अतिरिक्त कक्षाकक्ष नहीं है। कक्षाओं को दो सेक्शन में भी नहीं बांट पा रहे हैं। गर्मी में बच्चों को परेशानी हो रही है। इसके बावजूद स्कूल में प्रवेश के लिए आवेदन आ रहे हैं।
बोले अधिकारी
कंपोजिट विद्यालय महेशपुर में पर्याप्त प्रवेश हो चुका है। सरकारी स्कूल विद्यालय की तरफ बच्चों और अभिभावकों का झुकाव सुखद है। - डॉ. अरविंद पाठक, बीएसए
कक्षा एक में 50 एडमिशन
जिले में इस बार परिषदीय विद्यालयों के छात्र-छात्राओं की संख्या पिछले सत्र के मुकाबले 28 हजार कम हो गई है। पिछली बार जहां दो लाख के आसपास विद्यार्थी थे, वहीं इस बार 1.72 लाख ही रह गए। नामांकन बढ़ाने के लिए शिक्षा विभाग ने प्रत्येक स्कूल को कक्षा एक में कम से कम 10 नए बच्चों का प्रवेश लेने का लक्ष्य दिया था। कई विद्यालय यह लक्ष्य भी पूरा नहीं कर पाए।
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