देश में बेटियों से पढ़ाई में भेदभाव लेकिन, नतीजों में उनका ही दबदबा
बीते साल 10वीं और 12वीं में 65 लाख से अधिक विद्यार्थी हुए फेल
नई दिल्ली। देश के सरकारी स्कूलों में बेटियों की ज्यादा संख्या है जबकि निजी स्कूलों में बेटों की तादाद ज्यादा है। यह देश में लड़कियों के प्रति अभिभावकों के भेदभाव को दिखाता है। इसके बावजूद, बेटियां पास होने में बेटों से बहुत आगे हैं।
शिक्षा मंत्रालय के अनुसार, निजी स्कूलों में 12वीं में बेटियों का पास प्रतिशत 87.5% रहा, जबकि छात्रों में यह 75.6% ही था। निजी स्कूलों में 9 लाख छात्र फेल हुए, जबकि छात्राएं करीब 4 लाख ही फेल हुईं। स्कूलों में छात्राओं का उत्तीर्ण प्रतिशत छात्रों से छह फीसदी अधिक रहा।
वहीं, देशभर में बीते साल 10वीं व 12वीं में 65 लाख से अधिक विद्यार्थी फेल हो गए। राज्य बोर्डों में असफल
छात्रों की संख्या अधिक दर्ज की गई। वहीं, दोनों कक्षाओं में ओपन स्कूल का प्रदर्शन भी खराब रहा। 2023 में 56 राज्य शिक्षा बोर्ड व तीन राष्ट्रीय बोर्ड के कक्षा 10-12 के नतीजों के विश्लेषण से पता चला कि सरकारी स्कूलों से 12वीं की परीक्षा में लड़कियां अधिक शामिल हुईं, पर निजी स्कूलों व सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में लड़के ज्यादा शामिल हुए।
शिक्षा मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, कक्षा 10 के करीब 33.5 लाख विद्यार्थी अगली कक्षा में नहीं पहुंच सके। इसी तरह, 12वीं के करीब 32.4 लाख छात्रों ने ग्रेड पूरा नहीं किया। इनमें 5.2 लाख ने परीक्षा नहीं दी, जबकि 27.2 लाख असफल रहे। छात्रों के समग्र प्रदर्शन में पिछले वर्ष की तुलना में गिरावट आई है.
केंद्रीय बोर्ड में विफलता दर कम, राज्य बोर्डों में अधिक
कक्षा 10 में, केंद्रीय बोर्ड में छात्रों की विफलता दर 6 प्रतिशत थी, जबकि राज्य बोडों में यह 16 प्रतिशत से कहीं अधिक थी। 12वीं में, केंद्रीय बोर्ड में विफलता दर 12 प्रतिशत है, जबकि राज्य बोर्ड में 18 प्रतिशत है। वहीं दसवीं में फेल होने वाले छात्रों की संख्या सबसे ज्यादा मध्य प्रदेश बोर्ड में थी, उसके बाद बिहार व उत्तर प्रदेश हैं, जबकि 12वीं में सर्वाधिक फेल होने वाले विद्यार्थी उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश में हैं।
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