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नामचीन कंपनियों के सलाहकार बन सकेंगे शिक्षक व शोधार्थी ।


अयोध्या। डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के शिक्षक, शोधार्थी व विद्यार्थी अब नामचीन कंपनियों, संस्थाओं और संगठनों के कंसलटेंट बन सकेंगे। विश्वविद्यालय के आवासीय परिसर के लिए पहली बार परामर्श नीति तैयार करने के साथ प्रभावी भी कर दी गई है। इससे शिक्षक व शोधार्थी के पेशेवर ज्ञान व दक्षता में वृद्धि होने के साथ अतिरिक्त आय भी होगी। इसमें विश्वविद्यालय की भी हिस्सेदारी होगी।

कुलपति प्रो. प्रतिभा गोयल के निर्देशन में विश्वविद्यालय के रिसर्च एंड डेवलेपमेंट सेल की देखरेख में इस पॉलिसी को तैयार किया गया है। इस तरह की परामर्श नीति आमतौर पर केंद्रीय विश्वविद्यालयों, आईआईएम और आईआईटी समेत अन्य बड़े शैक्षणिक संस्थानों में क्रियान्वित की जाती है।

अब राज्य विश्वविद्यालय के रूप में अवध विवि में भी इसकी नींव पड़ गई है। अभी तक इस तरह की कोई पॉलिसी के न होने के चलते कसंलटेंसी के कई प्रोजेक्ट वापस चले जाते थे। अब ऐसा नहीं होने पाएगा।

परामर्श नीति की निर्धारण समिति में शामिल रहे विज्ञान संकायाध्यक्ष व चीफ प्रॉक्टर प्रो. एसएस मिश्र ने अमर उजाला को बताया कि इस नीति के लागू होने का सबसे ज्यादा लाभ विश्वविद्यालय के इंजीनियरिंग संस्थान, मैनेजमेंट, पर्यावरण विज्ञान, बायो केमेस्ट्री और माइक्रो बॉयोलॉजी विभाग को होगा।

निजी और सरकारी क्षेत्र के संस्थान इन विभागों से संबधित विषयों में विशेषज्ञों से परामर्श ले सकेंगे। इस नीति को कार्य परिषद से स्वीकृति मिल चुकी है। इसकी गाइडलाइन को विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर अपलोड कर दिया गया है।


परामर्श शुल्क में 50 फीसदी होगा विश्वविद्यालयय का हिस्सा

■ परामर्श नीति की निर्धारण समिति के समन्वयक रहे व्यवसाय, प्रबंध व उद्यमिता विभागाध्यक्ष प्रो. हिमांशु शेखर सिंह ने बताया कि जो कंपनी या संस्थान कंसलटेंट मांगेगा, उनके साथ विश्वविद्यालय एमओयू करेगा। इसके बदले में संबंधित संस्थान से परामर्श शुल्क लिया जाएगा। इसमें 50 फीसदी हिस्सा श्विविद्यालय का होगा। जबकि 30 फीसदी धनराशि संबंधित शिक्षक व शोधार्थी की टीम को मिलेगी। इस काम में विश्वविद्यालय की प्रयोगशालाओं का भी उपयोग किया जा सकेगा।



परामर्श नीति का उद्देश्य बाहरी संस्थाओं और संगठनों को उनकी समस्याओं के संबंध में पेशेवर सलाह और समाधान प्रदान करना है, जिनका वे स्वयं समाधान करने में सक्षम नहीं होते हैं। इसका लाभ विश्वविद्यालय के साथ शिक्षक और शोधार्थी को भी मिलेगा। वे खुद को पेशेवर तौर पर दक्ष करने के साथ आर्थिक तौर पर भी सशक्त कर सकेंगे।

-प्रो. एसके रायजादा, निदेशक, रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेल, अवध विश्वविद्यालय

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